जय जितेंद्र, कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 20 जुलाई मंगलवार, परम पूज्य सुधाकवर जी महाराज साहब के मुखारविंद से:-प्रभु महावीर की अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र के माध्यम से निर्वेद पर चर्चा करते हुए कहा कि भोगों से विमुख होना अथवा इंद्रिय विषयों की आसक्ति से निवृत्त हो जाना ही निर्वेद हैं। निर्वेद का सामान्य अर्थ है कि वैराग्य अर्थात मुख मोक्ष की तरफ और पीठ संसार की तरफ हो। वैराग्य का अर्थ सिर्फ घर परिवार छोड़ देना, वेश बदल लेना ही नहीं है। वैराग्य में सत्य का बोध होना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि निर्वेद के तीन स्तर हैं – पलजीवी, अल्पजीवी, चिरंजीवी। परजीवी अर्थात क्षणिक वैराग्य जब किसी की मृत्यु हो जाती है उस समय राम नाम सत्य है सुनकर जो वैराग्य उत्पन्न होता है और पल में ही जो गायब हो जाता है उसे पलजीवी वैराग्य कहते हैं। अल्पजीवी वैराग्य अर्थात किसी प्रिय व्यक्ति के वियोग हो जाने पर जो थोड़े समय के लिए वित्त में वैराग्य उत्पन्न होता है। लेकिन जो वैराग्य हमेशा के लिए आत्मा में स्थापित हो जाए उसे चिरंजीवी वैराग्य कहते हैं। इसी में सत्य का बोध होता है।
परम पूज्य सुयशा श्री जी महाराज साहब के मुखारविंद से:-इस संसार में 3 मूलभूत शक्तियां है – मन, वचन और काया। अगर समस्त प्राणियों की अपेक्षा देखा जाए तो कुछ प्राणियों को सिर्फ एक शक्ति मिलती है, कुछ प्राणियों को दो शक्तियां मिलती है और अनंत पुण्य वाणी के उदय से कुछ प्राणियों को तीन शक्तियां मिलती है। परमात्मा की अनंत कृपा से हमें यह तीनों शक्तियां सक्रिय रूप में मिली है। यह तीनों हमारे पतन का कारण भी बनती है और हमारे उत्थान का कारण भी बनते हैं। इन तीनों में स्पंदन के फलस्वरूप ही आत्मा में कर्मों का बंध होता है। इन तीनों के सहयोग से ही आत्मा अध्यात्म में प्रवृत्ति कर सकता है। पर यही तीनों संसार में भ्रमण भी करवा सकते हैं इसलिए जीव को हमेशा जागृत रहना चाहिए ।
आज की धर्म सभा में श्रीमान अशोक जी तालेड़ा ने 17 उपवास, श्रीमती सुशीला जी बाफना ने 9 उपवास, एवं श्रीमती प्रकाश बाई लालवानी ने 8 उपवास के प्रत्याख्यान किए। इसी के साथ कई धर्म प्रेमी बंधुओं ने विविध तपस्याओं के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।