चेन्नई. माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में अभातेयुप के तत्वावधान में, तेयुप चेन्नई द्वारा आयोजित वृहद सामायिक कार्यशाला*के अवसर पर युवाओं को विशेष प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि युवको में अच्छा सामायिक का क्रम बढ़ता रहे| जैसे जीवन में हम नाश्ता करते हैं, भोजन करते हैं| हमें नमस्कार महामंत्र की एक माला को नाश्ता और सामायिक को भोजन बनावे,* ताकि आत्मा की दृष्टि से अच्छी साधना का, अच्छा क्रम बन जाता हैं| हमे समय का प्रबंधन अच्छा करने का प्रयास करना चाहिए| कभी मन में प्रश्न उठ सकता हैं कि आत्मसाधना क्यों करें? जैसे भोजन शरीर की खुराक है, वैसे ही सामायिक, माला आत्मा का भोजन हैं| “नवकार माला नाश्ता हैं, अल्पाहार है, सामायिक पूर्ण आहार हैं|”*
सामायिक करने से मोबाइल से मिलती छुट्टी*
आचार्य श्री ने आगे कहा कि हमारा दिमाग दिन भर सांसारिक काम में चलता रहता है, सामायिक से दिमाग को आराम मिलता हैं, धर्म में लग जाता हैं, तो खुराक अच्छी मिल जाती हैं| सामायिक में स्वाध्याय, ध्यान, जप हो तो खुराक और मिल जाती हैं| सामायिक करने से मोबाइल से छुट्टी मिल जाती हैं|*
आचार्य श्री ने आगे कहा कि गृहस्थ सारा समय तो धर्म में नहीं लगा सकता, पर कुछ निकाले तो आत्मा को शोधि (शुद्धि) देना वाला होगा| जीवन में भौतिक के साथ आध्यात्मिकता की पुट हो|* श्रम के साथ विश्राम चाहिए| भौतिकता और आध्यात्मिकता का संतुलन हो जाए तो, आत्मा ठीक हो जाती हैं| कोरी भौतिकता का असर गलत हो सकता हैं, अत: साथ में आध्यात्मिकता का भी प्रभाव हो, जैसे डॉक्टर किसी भी दवा का साइड इफेक्ट न हो, इसके लिए साथ में दूसरी गोली देता हैं|*
ठाणं सूत्र के छठे स्थान के 24वें सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि उत्सर्पिणी काल के छ: विभाग हैं| एक कालचक्र 20 कोड़ा कोड़ी सागरोपम का होता हैं| उसके दो भाग हैं – अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी|
कालचक्र है घड़ी के समान*
आचार्य श्री ने आगे कहा कि कालचक्र एक घड़ी के समान हैं|* कालचक्र और घड़ी में समानता हैं| जैसे घड़ी के बारह विभाग हैं, उसी तरह कालचक्र के भी बारह विभाग हैं| अवसर्पिणी काल ह्रास की प्रकाष्ठा हैं| छठे आरे (विभाग) के अन्त में मनुष्य की आयु अधिकतम सोलह वर्ष की और अवगाहना (लम्बाई) छोटे बच्चे के जितनी होगी| यह सृष्टि का नियम हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि समय का विवेक पूर्ण अच्छा उपयोग होना चाहिए| समय के प्रति जागरूक रह कर समय का मूल्यांकन करे| ध्यान दें और चिन्तन करे कि आज मैने कौनसा अच्छा काम किया| कोई भलाई का, साधना का या अध्यात्म का काम किया क्या? कोई अधमता का काम तो नहीं हो गया| जैसे व्यापारी पैसे का हिसाब लगाता है, हमें भी समय का हिसाब लगाना चाहिए|*
समय है मेघ के समान*
आचार्य श्री ने आगे कहा कि समय को मेघ की उपमा दी गई हैं| जैसे मेघ बरसता है, पानी बाल्टी या कुण्ड में भरा जाये तो, पीने योग्य हो सकता हैं, वही पानी अगर गन्दे नाले में गिर जाये तो व्यर्थ हैं| पानी बरस रहा हैं, कहां इकट्ठा किया जा रहा हैं, उसका महत्व हैं| उसी तरह समय का सदुपयोग करने वाला उत्तम आदमी और दुरूपयोग करने वाला अधम प्राणी होता हैं|*
58 घड़ी काम की, 2 घड़ी राम की*
आचार्य श्री ने आगे कहा कि एक दिन में तीस मुहूर्त और साठ घड़ीया (एक घड़ी 24 मिनट की) होती हैं| कुछ समय साधना के लिए निकाले| आपने कहा कि आचार्य तुलसी कहा करते थे कि 58 घड़ी काम की, 2 घड़ी राम की| 58 घड़ी घर, 2 घड़ी हर की| 58 घड़ी कर्म की, 2 घड़ी धर्म की| 58 घड़ी पाप की, 2 घड़ी आपकी|* 2 घड़ी में एक सामायिक हो जाती हैं|
आचार्य श्री ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि तीर्थंकरों एवं गणधरों ने जो धर्म बताया है, उसका सम्यक् पालन हो, ताकि आत्म साधना का अच्छा क्रम बन सकता हैं|
गुरु प्रसन्नता से मिलता अक्षय सुख : साध्वी प्रमुखाश्री*
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कहा कि गुरु जिस पर प्रसन्न होते हैं, उसे अक्षय सुख का भण्डार मिल जाता हैं| गुरू की विनय भाव से सेवा, उपासना करने से प्राप्त दण्ड भी माफ हो जाता हैं|
मुम्बई से समागत जीवन विज्ञान के श्री संजीव नायक ने अपने भावों की अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि मैं जन्म से जैन तेरापंथी नहीं हूँ, पर कर्म से जैन तेरापंथी हूँ| मैं आचार्य श्री और तेरापंथ के आचार विचार, आम लोगो में पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूँ| तेयुप मंत्री श्री मुकेश नवलखा ने वृहद सामायिक कार्यशाला पर कहा कि हमारे आचार, विचार और संस्कार एक हो| मुनि श्री दीपकुमारजी ने इस अवसर पर अभिनव सामायिक का विधिवत् प्रयोग करवाया|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति