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माया की कषाय वाले माया में जीते है: महासती ललित प्रभाजी

माया की कषाय वाले माया में जीते है: महासती ललित प्रभाजी

*सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद*

*प्रखर पुण्य संयुक्तम्, महाव्रती जितेन्द्रियम् । प्रियवक्ता स्वभावेन, श्री सौभाग्य गुरुवे नमः ॥१॥*

पुज्य महासती ललित प्रभाजी गुरुदेव पूज्य सोभग्यमल महारासा के लिए कहते है कि वे स्वभाव से प्रिय वक्ता थे ।

ऊपर से मधुर ओर अंदर से भी मधुर पुज्य की प्रकाश मुनि जी मासा फरमाते है कि..

थानांग सूत्र में चार तरह के घड़े का वर्णन आता है

 *मधु का घड़ा मधुका ढक्कन, मधु का घड़ा जहर का ढक्कन ,*जहर का घड़ा मधु का ढक्कन* ,*जहर का घड़ा जहर का ढक्कन*,

1 एक घड़ा अन्दर से शहद अंदर भी मीठा, ऊपर से भी मीठा

2 एक घड़ा अंदर मीठा बाहर से जहर वाला

3 एक घड़ा ऊपर से मीठा अंदर से जहर जैसा

4 एक घड़ा ऊपर व अंदर दोनों में जहर जैसा।

*मुखं पदं वाणी मधुरा* जो मुख से प्रसन्न वाणी में मधुर वह धूर्त होते है , जो छल कपट वाले ठग होते है ठगते है, माया की कषाय वाले माया में जीते है ।

मोह : मूलतः द्रव्य (धन) को कहा

माया : मूलतः स्त्री को कहा

माया करने वाले मूलतः निकाचित कर्म बांधते है जिनका भोगे बिना छुटकारा नही होता।

*मुनि उपदेश ऋजुता का करता है* सरलता का उपदेश करे , स्वयं ऋजु बने दूसरे को भी ऋजु बनाये।

जीवन को सरलता से जीना है, छल कपट से जीने वाला हमेशा tension में रहता है, दुराव, छिपाव, अंधकार से दूर रहता है ।

*जा बहिता ता अन्तः जा अन्तः ता बहिता*

गुरुदेव में जो अंदर था वही बाहर था जो बाहर था वही अंदर भी था, जो करना वह खुल के करना , सरल भाव से रहो।

महापुरुषों के नेनो में वात्सल्य ओर वाणी में वात्सल्य होता है।

*सरलता*- जो बात जैसी है उसी रूप में स्वीकार करना यह सरलता है।

सरल व्यक्ति हर बात सीधी लेता है, सरल व्यक्ति कभी बुद्धि के साथ नही खेलता है।

हमारा जीवन दोहरा है , हर व्यक्ति के साथ हो रहा है, कोई ऐसा नही जो झूठ नही बोलता है, दोहरा जीवन जीने वाला सुखी नही अंदर संताप चलता है, हर बात छिपाने की आदत होती है, घर परिवार दोस्तो में अलग अलग खण्ड वाला जीवन

*दण्ड लगे है झंडों में , बाट दिया जीवन खण्डों में*

खण्ड में जीवन बाट दिया।

यह जीवन यंहा कर्म बंध ओर माया करे तो तिर्यंच में जाते है ।

पुरुष, स्त्री ,नपुंसक तीन लिँग (चिन्ह) होते है , सबसे ज्यादा नपुंसक (एकेंद्रिय, बेन्द्रीय, तेन्द्रीय, चोन्द्रीय , असन्नि मनुष्य)जीव होते है , उससे कम स्त्री, उससे कम पुरुष इसलिए *पुरुष प्रधान* है।

पुरुष माया करे तो स्त्री बनता है स्त्री माया करे तो नपुंसक बनती है , नीति में स्त्री को माया का भंडार कहा है ।

*त्रिया चरित्र, पुरुषस्य भाग्य, न जानाति देवी, कुतः मनुष्यः 1*

स्त्री का चरित्र और पुरुष का भाग्य देवता भी नही जानते है।अपनी बात प्रकट नही करना यह माया है।

आशा कभी मरती नही ।

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