जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने जैन धर्म की मान्यता नुसार इस संसार मे उत्तार वाद को महत्व दिया जिसमें जीवात्मा संसार से उपर उठकर उत्तार की और अर्थात मोक्ष की और प्रयान करता है अर्थात आत्मा मे परमात्मा बनने की शक्ति निहित है! जीव अपने पाप पुण्य रूपी कर्मानुसार चार गति चौरासी लाख योनिओं मे तीनों लोको मे निचालोक मध्यलोक व उधर्व लोक मे भव भर्मण करता ही रहता है सर्व भूत अर्थात समस्त जीवों मे यही संसार का चक्र चलता ही रहता है! अपने तप जप साधना संयम के कारण वह समस्त कर्म क्षय करके उपर की और मोक्ष की और प्रयान कर जाता है किन्तु मोक्ष जाने के बाद पुन :लौटकर नहीं आता। जबकि अन्य धर्मों की मान्यता नुसार अवतारवाद अर्थात ईश्वर समय समय पर पुन : जन्म धारण करके लोगों के दुखों का अन्त करते है!
आचार्य मानतुंग इसी भाव को प्रगट करते हुए कहते है, हे प्रभो आपमें वह शक्ति है जो आप का स्मरण करता है आपकी आज्ञा नुसार जप तप संयम साधना करता है उसे आप अपने समान बना देते है! यानि भक्त भगवान रूप मे बन जाता है! संसार मे कोई भी किसी को अपने समान बनाने मे इच्छुक नहीं रहता क्यों कि राग द्वेष के कारण हर व्यक्ति हर व्यक्ति से उपर रहकर जीना चाहता है। यहाँ तक शास्त्रों मे जिस पारस पथर रत्न का उल्लेख आता है वह भी लोह पदार्थ को स्वर्ण रूप मे बदल देता है किन्तु अपने सदर्श पारस का रूप नहीं दें सकता प्रभु आपने जीवों को अपने समान अर्थात कर्म मुक्त करने का मार्ग बतलाया है!
सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा मानवीय जीवन के गुणों का उल्लेख करते हुए कहा मानव मे अगर मानवता के गुण नहीं आ पाए सत्य अहिंसा करुणा के भाव प्रगट नहीं हुए तो मानव दानव का ही दूसरा रूप है! आज मानव तो करोड़ो अरबों मे नजर आते है पर उनकी जीवन चर्या दानवो की तरह हो रही है! सभा मे महामंत्री उमेश जैन द्वारा स्वागत व सूचना प्रदान की गई।