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मानव भव के क्षण सुहावने मिले हैं

मानव भव के क्षण सुहावने मिले हैं

मानव भव के क्षण सुहावने मिले हैं आज अपने ऊपर भगवान का अनुग्रह है कृपा है अपने पुण्य का उदय है अब बाकी है करना पुरुषार्थ हम एल आय सी ऑफिस में जाते हैंl वहां बोर्ड पर लिखा हुआ होता है योग क्षेम वहाम्यहं योग यानी अप्राप्त की प्राप्ति नहीं मिला तो मिलाना क्षेम यानी प्राप्त हुए की रक्षा करनाl जो नहीं मिला उसको मिलना मिले हुए को संचित करना हमको मनुष्य को मिल गया पर अब क्या करना सारी दुनिया को बदलने की अपने में ताकत नहीं पर स्वयं को बदलने की ताकत हैl

धर्म की नई है मैत्री है सड़क तू तेरे अंतर में रहे हुए राकेश को निकाल दे दूसरे के प्रति द्वेष को तू निकाल दl तेरी दृष्टि गुना पर ही रख कांटों पर नहीं जो गुना पर दृष्टि रखता है वह अंतर से जाग जाता हैl अहिंसा संयंम की आराधना में लग जाता है शब्द का ज्ञान याद कर लिया पर वह हृदयस्थ बनता नहींl आगे जाकर आत्मस्थ भी रहता नहीं कुछ पाने की इच्छा रखने वाला आगे बढ़ता है लग्न मंडप में बैठे हुए गुण सागर ने केवल ज्ञान को प्राप्त कर लिया हम तो संतो के चरणों में बैठकर भी कुछ प्राप्त नहीं कर पातेl

हम अभी संसार में अटके हुए हैं स्वयं को दोस्तों को धिक्कार है गुण सागर के गुना की अनुमोदना करना है आगे बढ़ते बढ़ते उनकी ऑठो रानियां ने भी अपनी आत्मा का कल्याण कर लियाl ग्रंथ मिले आपको निग्रंथ मिले हैं आपको दृष्टि करो आगम में ज्ञानी गुरू मिले तो भी निद्रा में पड़े हैंl अमूल्य रत्न मिला है पुण्य से भगवत बनाने वाला शासन मिला हैl धर्म भी मिला है अब क्या बाकी है भगवान बना ही तो बाकी हैl इसका पुरुषार्थ इसी भाव में करना है अगर यहां छुप गए तो कौन से घर में पहुंचेंगे पता नहीं क्या नरक निगोदमें पुणे भव भ्रमण करना है नहीं तो जागो धर्म की आराधना करते करते शिवरमणि को प्राप्त कर लो। साध्वी धैर्योश्रीजीने एक गीतिका पेश की एक सुंदर सा गेम खुल जा हीरा अर्चना खेल गया सभी ने आनंद लिया बहुत सुंदर तरीके से सभी ने सहयोग दिया संचालन श्री गौतम जी नाहर ने कियाl

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