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 मानव भव और जैन दर्शन की प्राप्ति होना कठिन है: डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा.

 मानव भव और जैन दर्शन की प्राप्ति होना कठिन है: डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा.

🏰☔ *साक्षात्कार वर्षावास* ☔🏰

          *ता :06/8/2023 रविवार*

     🛕 *स्थल: श्री राजेन्द्र भवन चेन्नई*

 🪷 *विश्व वंदनीय प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत, दीक्षा दाणेश्वरी प.पू. युगप्रभावक आचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा. के प्रवचन के अंश

 🪔 *विषय: भवयात्रा कि भव्यता*🪔

~अनंतकाल तक हमारे जीव ने जहाँ अनंत दुःख सहन किया हो वह स्थान है निगोद का. आँख की एक पलक मे 17 1/2 बार जनम मरण का भयंकर दुःख अनंतकाल तक सहन किया था।

~ चिंतामणि रत्न की प्राप्ति होना शायद सरल है किंतु मानव भव और जैन दर्शन की प्राप्ति होना कठिन है।

~ यदि हमारा मन शैतान की तरह है तो मृत्यु के बाद दुर्गति निश्चित है और यदि हमारा मन प्रभु की तरह है तो मृत्यु के बाद सद्गति निश्चित है।

स्वभाव, विचार, व्यवहार, का परिवर्तन मूलभूत रूप से होना ही चाहिए तो ही हमारा जीवन सफल है।

~ प्रभु महावीर स्वामी ने केवल ज्ञान में देखकर जगत को सुखी बनाने के लिए कहां की हमें जगत के सर्वे जीवो के लिए परम मैत्री भाव और सर्व जड वस्तु के लिए उदासीन भाव होना ही चाहिए।

~ प. पू. प्रभु राजेंद्र सुरीश्ववरजी महाराजा ने कहा कि हर कोई इंसान यदि स्वयं के जीवन में पापों का त्याग करे और धर्म से गुणों को प्राप्त करे तो वह इंसान भगवान रूप बन ही सकता है।

~ पूर्व के भवों में हमारे जीव ने कटना, छेदना, जलना, डरना, मरना, तड़पना आदि अनेक दुख अनेक रुप से सभी गति में सहन किए हैं तो अब इस भव में शाश्वत सुख पाने के लिए सम्यक दर्शन पाना ही चाहिए।

    *”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*

🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪

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