तिरुपति. मानव जीवन आजकल दो मार्गो से उन्नति की राह पर बढ़ रहा है। एक मार्ग धर्म का है जिस पर चलकर मानव कल्याण होता है तो दूसरा रास्ता भौतिक सुख का, जो कि वैज्ञानिक उपकरणों से प्राप्त किया जा रहा हैं। पहले प्रत्येक मनुष्य खुद के लिए ही नहीं, पूरे कुटुम्ब, समाज और देश के प्रति समर्पित भाव रखता था, अब व्यक्ति अपने परिवार तक ही सीमित हो गया है।
यह निश्चित है कि जब जब दायरा कम होगा परेशानी ज्यादा रहेगी क्योंकि हम अपनी परेशानियों को बांट कर नहीं चलते और खुद हल खोजते हैं वो चाहे नेट पर हो, तांत्रिक प्रणाली में हो या कोई दूसरा सस्ता सरल रास्ता जो भी मिले। पहले शुभ कमाई से जो लाभ होता था तब शुभ लाभ लिखा जाता था।
आजकल लाभ शुभ लिखा जाता है यानी लाभ होने चाहिए चाहे जैसे भी हो यही एक अंतर हमे भटकने पर मजबूर करता है। यह उद्गार आदर्श मुनि ने तिरुपति में अपने ब्रह्मर्षि आश्रम में प्रवास विहार के दौरान प्रकट किए। उन्होने कहा कि आज हमारे बीच ऐसे धार्मिक स्थल बहुत पाये जाते हैं जिसमें अध्यात्म शिक्षा प्राप्त की जा सके।
इस स्थान में आकर महसूस किया कि यह स्थान जागृत तपोभूमि है। ब्रह्मर्षि आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष घनशयाम दास मोदी ने मुनि का अभिवादन किया।