विल्लीपुरम. यहां क्षत्रिय घांची समाज भवन में विराजित संत रामरतन ने कहा मनुष्य को हमेशा धर्म करना चाहिए।जप, दान, तपस्या, पूजा आदि धर्म के अनेक मार्ग हैं। धर्म करते समय मन में श्रद्धा जरूर होनी चाहिए। श्रद्धा से भगवान जल्दी प्रसन्न होते हंै।
संत नामदेव के बारे में बताया एक बार नामदेव के पिता बाहर जाते समय उनको भगवान के भोग लगाने की कह कर गए। जब नामदेव ने सच्ची श्रद्धा से भगवान के भोग लगाया लेकिन भगवान की प्रतिमा ने प्रसाद ग्रहण नहीं किया। इस पर नामदेव भगवान के सामने प्राण त्यागने लगे तभी भगवान ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर प्रसाद ग्रहण किया।
इसलिए भक्ति हो तो नामदेव जैसी। संत ने धर्म के बारे में बताया कि धर्म का पहला पायदान दया है, दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान। यानी मनुष्य को जीवन में हमेशा दया रखनी चाहिए। कभी-कभी धर्म करते करते भी अधर्म हो जाता है और कभी अधर्म मे भी धर्म हो जाता है।
एक उदाहरण के जरिये बताया कि राजा दक्ष द्वारा भगवान शंकर का अपमान करना और सती द्वारा अपने स्वामी का अपमान सहन न करके राजा दक्ष के यज्ञ की अग्नि में कूदकर जान दे देना अधर्म की श्रेणी में आता है।
इसी प्रकार महाभारत से अश्वत्थामा व द्रोणाचार्य की कथा सुनाई। पं. पुष्करराज शास्त्री ने बताया कि प्रतिदिन भजन संध्या में स्थानीय गायक भजनों की प्रस्तुति देते हैं।