श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी की निश्रा में श्रद्धा भरे माहोल के बीच पर्युषण पर्व के अनुष्ठानों का आरंभ हुआ । पर्यूषण पर्व के दौरान सुबह पूजा-पक्षाल, प्रवचन और शाम को प्रतिक्रमण होगा। आचार्य श्री ने पर्युषण पर्व के ऊपर अपने मार्मिक उद्गार प्रगट करते हुए कहा की पर्युषण पर्व का शाब्दिक अर्थ है- आत्मा में अवस्थित होना। पर्युषण शब्द परि उपसर्ग व वस् धातु इसमें अन् प्रत्यय लगने से पर्युषण शब्द बनता है।
पर्युषण यानी ‘परिसमन्तात-समग्रतया उषणं वसनं निवासं करणं’- पर्युषण का एक अर्थ है- कर्मों का नाश करना। कर्मरूपी शत्रुओं का नाश होगा तभी आत्मा अपने स्वरूप में अवस्थित होगी अत: यह पर्युषण-पर्व आत्मा का आत्मा में निवास करने की प्रेरणा देता है।पर्युषण महापर्व आध्यात्मिक पर्व है। इसका जो केंद्रीय तत्व है, वह है आत्मा। आत्मा के निरामय, ज्योतिर्मय स्वरूप को प्रकट करने में पर्युषण महापर्व अहं भूमिका निभाता रहता है। अध्यात्म यानी आत्मा की सन्निकटता। यह पर्व मानव-मानव को जोड़ने व मानव हृदय को संशोधित करने का पर्व है। यह मन की खिड़कियों, रोशनदानों व दरवाजों को खोलने का पर्व है।भगवान महावीर ने क्षमा यानी समता का जीवन जीया। वे चाहे कैसी भी परिस्थिति आई हो, सभी परिस्थितियों में सम रहे। आचार्य श्री आगे बोले की जब दो वस्तुएँ आपस में टकराती हैं, तब प्रायः आग पैदा होती है।
ऐसा ही आदमी के जीवन में भी घटित होता है। जब व्यक्तियों में आपस में किन्हीं कारणों से टकराहट पैदा होती है, तो प्रायः क्रोधरूपी अग्नि भभक उठती है और यह अग्नि न जाने कितने व्यक्तियों एवं वस्तुओं को अपनी चपेट में लेकर जला, झुलसा देती है। इस क्रोध पर विजय प्राप्त करने का श्रेष्ठतम उपाय क्षमा-धारण करना ही है और क्षमा-धर्म को प्राप्त करने का अच्छा उपाय है कि आदमी हर परिस्थिति को हँसते-हँसते, यह विचार कर स्वीकार कर ले कि यही मेरे भाग्य में था। पर्युषण पर्व भी इसी कला को समझने, सीखने एवं जीवन में उतारने का दिन होता है।