Share This Post

ज्ञान वाणी

मानव को मानव बनाने का मध्यम मार्ग हैं – अणुव्रत : आचार्य श्री महाश्रमण

मानव को मानव बनाने का मध्यम मार्ग हैं – अणुव्रत : आचार्य श्री महाश्रमण

दमी के भीतर प्रज्ञा की चेतना का जागरण या सुन्दर कल्पना शक्ति का होना, एक चरण हैं| दूसरा चरण हैं – वह कल्पना या प्रज्ञा से आये विचार एक संकल्प रूप ले लेना| जब तक हमारी कल्पना, संकल्प का रूप नहीं ले लेती, तब तक उसका साकार होना कठीन हो सकता हैं| तो कल्पना पैदा हो और कल्पना संकल्प का रूप धारण करें, फिर वह संकल्प साकार होने की अवस्था में आये, वह कार्यान्वित हो, क्रियान्विती हो|  सपना, संकल्प और क्रियान्विती इन तीनों का योग होता हैं, तो कार्य सम्पन्न हो सकता हैं, निष्पत्ति सामने आ सकती हैं| उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में अणुव्रत दिवस के रूप में आचार्य श्री तुलसी के 105वें जन्मदिवस के अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहे|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि आज से 104 वर्ष पूर्व लाडनूं की दूसरी पट्टी में, खटेड़ वंश में बालक तुलसी का जन्म हुआ| आचार्य तुलसी जब तेरापंथ धर्मसंघ के सम्राट, अनुशास्ता बने, तब से पुर्व में सामान्य रूप में, बाद में व्यवस्थित, आज के दिन को मनाया जाने लगा| आचार्य श्री ने आगे कहा कि एक दिन आचार्य श्री तुलसी ने कहा कि मैं तो अपने जन्मदिन के दिन साधना, जप आदि करता था, बाद में यह कार्यक्रम, उपक्रम के रूप में मनाया जाने लगा| आचार्य श्री तुलसी के आचार्य कार्यकाल में अनेकों महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित हुए| आचार्य श्री तुलसी में चेतना की विशेष निर्मलता, ज्ञानावरणीय कर्म का विशेष क्षयोपक्षम था| उन्हों मेें ज्ञान की चेतना थी, समझने की चेतना थी और बात को प्रस्तुत करने की चेतना थी|

    अहिंसा यात्रा, अणुव्रत का प्राण हैं

  आचार्य श्री ने आगे कहा कि आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन की शुरुआत की| अणुव्रत मध्यम मार्ग हैं, सरल मार्ग है, मानव को मानव बनाने का| अणुव्रत दिवस के रूप में आज का दिन आत्म शक्ति और अणुव्रत की शक्ति नियोजन का दिन हैं| आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत के प्रचार प्रसार में अपनी शक्ति, श्रम का सम्यक् नियोजन कर दक्षिण भारत की यात्रा पर भी आये, चेन्नई में पच्चास वर्ष पूर्व चातुर्मास भी किया| यह उनका भाग्य था, पुरूषार्थ था, कि अणुव्रत जन जन के, ग्रहण शक्ति में शामिल हो गया और तेरापंथ का भी भाग्य था, कि आचार्य श्री तुलसी जैसे आचार्य मिले| आचार्य श्री ने आगे कहा कि आज से ठीक चार वर्ष पूर्व दिल्ली से 09 नवम्बर 2014 को अहिंसा यात्रा के रूप में हम यात्रायित हुए| अहिंसा यात्रा भी अणुव्रत का प्राण हैं| सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति अणुव्रत के प्राण हैं, जीवन के त्राण हैं| अणुव्रत अनेक जागतिक समस्याओं का समाधान हैं|

   गति करने में हो संकल्प

  आचार्य श्री ने आगे कहा कि आज ही के दिन 38 वर्ष पूर्व परम् पूज्य आचार्य श्री तुलसी द्वारा समण श्रेणी का जन्म हुआ| समण श्रेणी ने प्रगति की हैं, कहीं पगडंडी से, कही मध्यम गली से, तो कहीं राजमार्ग से| गति करने वाले में संकल्प हो और गति कराने वाले में भी संकल्प हो, मनोबल हो, काँटों के चुभन झेलनी की भी क्षमता हो| काँटों की चुभन से बचने के लिए अच्छे पदत्राण पहने हुए हो, तो आदमी कहीं पहुंच सकता हैं| समण श्रेणी की गति, मति हुई हैं| समण श्रेणी भारत से बाहर और अन्दर भी काम करती हैं, सेवा दे रही हैं|  जैन विश्व भारती संस्थान में भी शिक्षण सेवाएँ दे रही हैं| साधु – साध्वीयों की सेवा, परिचर्या, समणीयों की सेवा, परिचर्या के साथ, श्रावकों की सार संभाल भी कर रही हैं|

   सेवा में प्रकृति पर नहीं, संस्कृति पर दे ध्यान

   आचार्य श्री ने आगे कहा कि सेवा एक ऐसा तत्व हैं कि सेवा में व्यक्ति को नहीं, अपितु संघ को देखना चाहिए| व्यक्ति की प्रकृति को गौण करके सेवा करे, कि हमें तो संघ की सेवा करनी हैं| सेवा में प्रकृति पर ध्यान नहीं देकर, संस्कृति पर ध्यान देना चाहिए| जहां भी सेवा की अपेक्षा हो, हमें अहोभाव से सेवा में लगकर, सामने वाले को चित्त समाधि प्रदान करने में सहयोगी बनना चाहिए|

     समणीयां है रिजर्व फोर्स

  आचार्य श्री ने समण श्रेणी पर विशेष कृपा बरसाते हुए कहा कि समणीयां रिजर्व फोर्स हैं, जहां अपेक्षा हो, तुरन्त पहुँच जाती हैं, मोर्चा संभाल लेती हैं, फिर वो चाहे सेवा हो या संथारा| वे इस दिशा में और मनोभाव रखे, अहोभाव से सेवा करे| डॉक्टर बनना अच्छा है, सेवा में भी डॉक्टर बने| ये समण श्रेणी अपने आप में अच्छी शक्ति है, बहुत उपयोगी है, वे विकास करती हुई, उध्वारोहण की ओर आगे बढ़े| आचार्य श्री तुलसी हमारे गुरु थे, उनके प्रति भी हमारी श्रद्धांजलि हैं|

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar