प्रस्तोताः- दक्षिण सूर्य डॉ. वरुण मुनि ‘अमर शिष्य’
भारतीय संत- परंपरा के प्रतिनिधि मुनि शिरोमणि थे – उत्तर भारतीय प्रवर्तक भण्डारी श्री पदममचन्द्र जी म.सा.। पर्याय और परम्परा से वे एक जैन संत थे, परन्तु परार्थ और परमार्थ की दृष्टि से वे सार्वजनीन और सार्वभौमिक महापुरुष थे। जाति, धर्म, सम्प्रदाय, उच्च, निम्न, देश-प्रदेश आदि की परिधियों से उन्मुक्त रहकर उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव-मंगल और विश्व कल्याण के लिए समर्पित किया। शिक्षा, चिकित्सा और व्यसन मुक्ति के लिए उन्होंने आजीवन अभियान चलाया। उनकी मंगलमय प्रेरणाओं से उत्तर भारत में सैकड़ों स्कूलों, कालेजों, लाइब्रेरियों, अस्पतालों, डिस्पेंसरियों और सांस्कृतिक संस्थानों की स्थापना हुई। श्रद्धेय गुरुदेव की प्रेरणा से स्थापित इन संस्थानों से आज भी हजारों लाखों लोग लाभान्वित हो रहे हैं।
श्रद्धेय गुरुदेव श्री भण्डारी जी म.सा. का जन्म हरियाणा के हलालपुर गांव (जिला सोनीपत) में विजय दशमी के पावन दिन ईस्वी सन् 1917 को हुआ। जन्म से वे अग्रवाल कुल अवतंस थे। 17 वर्ष की अवस्था में जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी म.सा. के प्रशिष्य एवं संस्कृत- प्राकृत विशारद पण्डित रत्न परम पूज्य श्री हेमचंद्र जी म. सा. के शिष्य के रूप में उन्होंने जैन दीक्षा स्वीकार की । कुछ ही वर्षों में वे जैन और जैनेतर दर्शन के अधिकारी विद्वान बन गए। सेवा, स्वाध्याय, धर्मप्रभावना, जन-कल्याण आदि विविध गुणों के भण्डार होने से आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी म.सा. द्वारा इनको ‘भण्डारी’ उपनाम से विभूषित किया गया।
सन् 1986 में आचार्य सम्राट श्री आनन्दऋषिजी म.सा. ने गुरुदेव श्री भण्डारी जी म.सा. को प्रवर्तक नियुक्त कर उत्तर भारत के श्रमण समाज का नेतृत्व करने का बृहद् दायित्व प्रदान किया। यह निर्भ्रान्त सत्य तथ्य है कि श्री भण्डारी जी म. सा. के दिशा- दर्शन में उत्तर भारत में जैन धर्म का महान उत्कर्ष हुआ। संघ और समाज को एक सूत्र में पिरोकर उन्होंने जिनशासन की उत्कृष्ट प्रभावना की।
समाज-सुधार और समाज सेवा के क्षेत्र में गुरुदेव श्री भण्डारी जी म.सा. ने अगणित कार्य किए, जिनके उल्लेख के लिए एक बड़े ग्रन्थ की अपेक्षा होगी। संक्षेप में निम्नलिखित वर्णन से सुज्ञजन अनुमान लगा सकते हैं-
उत्तर भारत के अनेक शहरों, कस्बों और गांवों में आपकी सदप्रेरणाओं से अनेक स्कूलों और कालेजों का निर्माण कराया।
शताधिक लाइब्रेरियों की स्थापना कराई। दर्जनों अस्पतालों और डिस्पेंसरियों का निर्माण कराया।
अनेक सिलाई सेंटर खुलवाए।
शताधिक स्थानकों का नवनिर्माण एवं जीर्णोद्धार कराया।
शिक्षा के प्रचार- प्रसार के लिए दर्जनों पुस्तकों का प्रकाशन कराके समाज में वितरण कराया।
लाखों लोगों को व्यसनों से मुक्त करके सदाचारी जीवन का अनुयायी बनाया।
आपकी प्रेरणा से अद्यतन लाखों बालक-बालिकाओं को पुस्तकें, कॉपिया, पैन, स्कूल ड्रेस आदि उपलब्ध कराए गए। यह पुनीत कार्य आज भी उनके शिष्यों और भक्तों द्वारा नियमित किया जा रहा है।
‘अन्नदानम्’ कार्यक्रम उन्होंने शुरू कराया। आज भी यह अबाध रूप से गतिमान है। प्रतिवर्ष हजारों जरूरतमंद परिवार अन्न-वस्त्रादि से लाभान्वित होते हैं।
एक और ऐतिहासिक कार्य श्रद्धेय गुरुदेव ने अपने सुशिष्य श्रुताचार्य साहित्य सम्राट प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म. सा. को प्रेरित कर सम्पन्न किया। आपने जैन आगमों ( शास्त्रों ) को प्राकृत, हिन्दी और अंग्रेजी अनुवाद सहित प्रकाशित कराया। विषयानुरूप सुललित चित्रावली से ये आगम समृद्ध हैं। जैनागमों को वैश्विक स्वरूप में प्रस्तुत करना निःसंदेह आपका एक अभूतपूर्व कार्य है।
अनन्त गुण-निधान पूज्य दादा गुरुदेव भण्डारी श्री पदमचंद्रजी म.सा. की 106 वीं जन्म जयंती पर उनके श्रीचरणों में अनंत कोटि नमन – वन्दन अर्पित करते हैं ।