चेन्नई. हमारे यहां एक बड़ी प्रसिद्ध उक्ति है यत्र नारियस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता भी निवास करते हैं। नारी के अनेक रूप हैं। कहीं वह पद्मावती, चक्रेश्वरी, अंबिका के रूप में पूजी जाती है तो कहीं सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा के रूप में। परंतु थोड़ा विचार करें आज नारी की समाज में क्या स्थिति है? नवरात्री पर्व हमें यही चिंतन करने की प्रेरणा देते हैं। यह विचार रुपेश मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में नवरात्रि की पूर्व संध्या पर व्यक्त किए। उन्होंने कहा
नारी के जीवन की विभिन्न भूमिकाएं होती हैं। माता, पत्नी, बहन, बेटी व अनेक रिश्तों में समाया हुआ उसका जीवन होता है। हम देखते हैं नवरात्री के दिनों में भारत के अनेक राज्यों में मां शक्ति के विभिन्न रूपों की लोग बड़े जोर-शोर व श्रद्धा भाव से पूजा करते हैं परंतु जरा विचार करें घर में जो जन्म देने वाली मां है, उसकी स्थिति कैसी है? क्या ठीक ढंग से उनकी सेवा होती है परिवार में सब उनका ध्यान रखते हैं। दूसरी ओर पत्नी को देखें आप लक्ष्मी की तो बड़े चाव और भाव से पूजा करते हैं और गृहलक्ष्मी की उपेक्षा व अपमान करते हैं क्या यह उचित है?
बहन के रूप में क्या आज बाजार से गुजरती हुई हर लडक़ी स्वयं को सुरक्षित अनुभव करती है? एक ओर तो कुंवारी कन्याओं को नवरात्र की अष्टमी नवमी के दिन बड़े भक्ति भाव से भोजन जिमाया जाता है उन्हें दक्षिणा भेंट कर प्रणाम किया जाता है तो दूसरी ओर कन्याओं की गर्भ में ही सफाई के नाम पर हत्या की जा रही है।