विजयनगर स्थानक भवन में विराजित जैन दिवाकरिय साध्वीश्री प्रतिभाश्रीजी ने पर्वाधिराज पर्युषण पर अष्ट दिवसीय कार्यक्रम के तहत विषयों पर आधारित प्रवचनों की श्रृंखला में आज तीसरे दिन सेवा धर्म सर्वोपरि पर विवेचन फरमाते हुए कहा कि दुनिया में लाखों भगवान है पर माता पिता से बड़ा भगवान और कोई नहीं है। हम अन्य भगवान या गुरुओं की सेवा करने से कुछ मांगने के हकदार भी हो जाते हैं पर जीवन पर्यन्त चाहे जितनी भी सेवा करले हम माता पिता के उपकारों का ऋण नहीं चुका सकते है। माता पिता से प्राप्त आशीर्वाद के आगे महान से महान शक्तियां भी फेल हो जाती है। व्यक्ति को प्रातः उठते ही अपने माता पिता के चरण छू कर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। श्रवण कुमार का उदाहरण देकर समझाया कि बुढ़ापे में हमें हर कदम पर उनकी सेवा करनी चाहिए,हर रोज उन्हें धर्मस्थान पर लाकर अपने ऋणों को कम किया जा सकता है।
साध्वी प्रेक्षाश्रीजी ने मोक्ष के चार द्वार के तहत दान के बारे मे कहा कि दान छपाकर नही छुपाकर देना चाहिए। आज व्यक्ति दान देने से ज्यादा उसका प्रचार कर देता है। आज शील पर व्याख्या करते हुए श्रावक के पांचवे शीलमहाव्रत के बारे मे कहा कि ब्रम्हचर्य में बंधा हुआ व्यक्ति ही उत्तम आचरण वाला मर्यादित पुरुष कहलाता है। शील हीरे के समान है जब तक वह अंगूठी में जड़ित रहता है अंगूठी की शोभा बनी रहती है लेकिन निकल जाने पर उस अंगूठी की कोई शोभा नहीं रह जाती है। वैसे ही शील के बिना शरीर की कोई शोभा नही रह जाती है। साध्वीश्री ने कहा कि शील पृथ्वी, आग, पानी और हवा के समान है, जबतक ये मर्यादाओं में रहती है बहुत सुंदर व उपयोगी भी होती है, पर यदि ये अपनी मर्यादाओं से बाहर हो जाये तो प्रचंड प्रलय मच जाता है।
आज बाहर क्षेत्रो तिंडीवरम, भोपाल, मुंबई व गोडवाड़ भवन के महामंत्री कुमारपाल शिशोदिया ने धर्म संघ की शोभा बढ़ायी। संघ के अध्यक्ष राजेन्द्र कुमार कोठारी ने सभी मेहमानों का हार्दिक अभिनंदन किया। महिला व बहुमण्डल द्ववारा तेले का तपेला से बहुत ही सुंदर हृदय स्पर्शी तपस्या के ऊपर नाटिका प्रस्तुत की। सुराणा परिवार द्ववारा प्रोत्साहन राशि से सम्मान किया गया। संघ के मंत्री कन्हैया लाल सुराणा ने दैनिक कार्यक्रमों के तहत आयोजित प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरुष्कार प्रदान करते हुए आज आयोजित होने वाली वंदना प्रतियोगिता व आगामी कार्यक्रमो की सूचनाऐं प्रदान की।