जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने आदिनाथ भगवान की जीवन गाथा का वर्णन विवेचन करते हुए उनके चरण कमल को सर्वाधिक पवित्र बतलाया! भारतीय परम्परा मे महापुरषो के चरण को कमल की उपमा से उपमित किया गया है क्योंकि कमल पवित्र पदार्थ है जो हमेशा जन्म के साथ ही सुगंध लेकर उत्पन्न होता है! उसकी धीमी धीमी सुगंध सौरभ से सम्पूर्ण वायु मण्डल शुभ पुद्गलो से प्रभावित हो उठता है! जनता उसके समीप पहुंचकर अपना तनाव समाप्त करती है, कमल पुष्प अंतिम समय होने के बाद भी वातावरण को सुवासित करता ही रहता है! मानव का जीवन भी सदगुणों के कारण सुगन्धित रहना चाहिए किन्तु मानव अपने तन मन से वातावरण को और दूषित करता रहता है!
प्रभु के चरण कमलवत सदैव सौरभता प्रदान करते रहते है! उनके चरण कमल के दर्शन स्पर्शन मात्र से ही त्याग वराग्य के भाव जागृत हो उठते है! आचार्य मानतुंग ने प्रभु चरणों की महिमा करते हुए अपना समर्पण किया है! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा भक्तामर जी के माध्यम से परमात्मा का जीवन सभी के लिए प्रेरणादायक बतलाया, आवश्यकता है उनके प्रति मनसा वाचा कर्मना समर्पण होना चाहिए, बूंद सागर मे विलीन होते ही सागर का विराट रूप धारण कर लेती है, आत्मा भी समर्पित होते ही परमात्मा का विराट रूप धारण कर लेती है! देव गुरु धर्म माता पिता संघ समाज के प्रति विनय भी आवश्यक है! महामंत्री उमेश जैन द्वारा बंगलौर से आये हुए गुरु भक्तो का स्वागत किया गया व सामाजिक सूचनाएं प्रदान की गई।