चेन्नई. जीवन में मित्र का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता होता है जिससे आप अपने दिल की हर बात कर सकते हैं। जीवन में या तो सुदामा जैसे मित्र बनें या फिर कृष्ण जैसे। मित्रता के रिश्ते में स्वार्थ भाव नहीं अपितु प्रेमभाव होना चाहिए। यह विचार वरुण मुनि ने प्रवचन सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। जैन भवन, साहुकारपेट में चल रही चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए गुरुदेव ने कहा आज ‘फ्रैंडशिप डे’ है। हमारे यहां तो 365 दिन ही मां-बाप की सेवा और प्रेमभाव का, मैत्री भाव का व्यवहार होता है और होना भी चाहिए। पर ‘ये पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव है कि- ‘मदर्स डे, फादर्स डे, टीचर्स डे मनाया जाता है। मदर्स डे के दिन तो मां को गुलाब का फूल देते हैं, सेल्फी लेते हैं परंतु बाकी दिन मां कहां है, किस हाल में है, कोई खबर नहीं।
जहां तक फ्रैंडशिप डे की बात है, यह रिश्ता बहुत खास होता है। इस रिश्ते की गरिमा का ध्यान रखें। जीवन में जहां सद्गुण अच्छे दोस्तों के कारण आते हैं, वहीं जीवन में मित्रों के कारण ही दुर्गुण भी आते है। इस लिए मित्र के चुनाव में आपको बहुत ही सावधानी रखनी चाहिए। गुरुदेव ने बताया आज अधिकतर लोग ‘फेसबुक’ का प्रयोग करते हैं। एक-एक व्यक्ति के फेसबुक में 2-3 हजार दोस्त होते हैं। पर आज के समय की आवश्यकता यह है कि- मां-बाप को बच्चों का दोस्त बनना चाहिए ताकि उन्हें बाहर दोस्त न खोजने पड़े। आपके जीवन में दादा – दादी हों या भाई-बहन, वे भी दोस्त की भूमिका निभा सकते हैं। आप बाहर के किसी व्यक्ति को दोस्त बनाएं तो इतना ध्यान अवश्य रखें कि वह व्यसनी न हो, खुशामद करने वाला या मूर्ख न हो।
कई बार लोग कह देते हैं आजकल अच्छे दोस्त मिलते ही कहा हैं? तो भाई आप स्वयं ही एक अच्छे दोस्त बन जाएं, आपको किसने मना किया है? बस इतना याद रखें- जैसा आपका मित्र होगा, वैसा आपके जीवन का चरित्र होगा। प्रवचन सभा में नन्हें-मुन्ने बच्चों ने सामायिक व्रत की सामूहिक आराधना की। उप प्रवर्तक पंकज मुनि के मंगल पाठ के द्वारा धर्मसभा का समापन हुआ।