मां बाप को घर में नहीं दिल में रखें मां दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कृति है।। मां के ममता की एक बूंद अमृत के समुद्र से भी ज्यादा मीठी होती है मां का ह्रदय बच्चे की अद्भुत पाठशाला है। बच्चे का भाग्य सदैव उसकी मां की कृति है मां का आंचल शीतल जल का सागर है पत्नी तो पसंद से मिलती है पर मां पुण्य से मिलती है। हम मां बाप को घर में ना रखें बल्कि दिल में रखें।
यह सुविचार शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि अर्हत कुमार जी ने महिला मंडल के बैनर तले मेरी मां के कार्यक्रम में कहे , उन्होंने आगे कहा-मां-बाप का ऋण कभी चुकाया नहीं जा सकता, पर आज के दौर में माता पिता का सम्मान घट रहा है।
भारत की संस्कृति में वृद्धाश्रम होना एक आश्चर्य की बात है। जो मां 25 साल तक अपने बेटे के लिए जी जान दांव पर लगा देती है, वही बेटा उस मां को एक क्षण भी नहीं चाहता हमें मदर की कदर करनी है और फादर का आदर करना है। मां तो ममता की मनभावन मूरत होती है ।
मां सहनशीलता की प्रतीक होती है। मां अपने बच्चों के लिए मर मिटने को भी तैयार हो जाती है। मां की आंखों में आंसू दो बारी आते हैं ,एक जब लड़की घर छोड़े तब और एक बेटा मुंह मोड़े तब। जब आप ने धरती पर पहला सांस लिया तब मां-बाप आपके पास थे अब आपका फर्ज है जब वह अंतिम सांस ले तब आप उनके पास रहे।
मां जीवन की मृदुभा है।मां अकथनिय है,अद्वितीय है, अवरणीय है। हम मां से आशीर्वाद प्राप्त करें क्योंकि उनका आशीर्वाद कभी खाली नहीं जाता है। हम मां का सम्मान कर उनके चित्त में समाधि लाने का प्रयास करें और उनको अध्यात्म में सहयोग करें ।
सहयोगी संत मुनि भरत कुमार जी ने कहा-
मां ने दिए बेटे को संस्कार व संस्कृति,
बालक के जीवन भर प्रभाव डालती रहती।।
बचपन से लेकर 55 तक बालक रहता है स्वस्थ ,
मां बाप का बुढ़ापा हमेशा हमेशा रहता है मस्त।।
बाल संत जयदीप कुमार जी ने मां शब्द के ऊपर सुंदर व्याख्या की।
कार्यक्रम की शुरुआत महिला मंडल के मंगलाचरण से मैसूर से पधारे अणुव्रत समिति राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महेन्द्र जी नाहर एवं अनुव्रत समिति अध्यक्ष शांतिलालजी नवलखा ने माँ पर विचार व्यक्त किया तेरापंथ सभा अध्यक्ष जयंतिलाल जीरावला ने आगंतुकों का स्वागत किया! मदुरै तेरापंथ भवन में ये कार्यक्रम हुआ।