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माँ होती पहला तीर्थ, पहला मंदिर : साध्वी डॉ गवेषणाश्री

माँ होती पहला तीर्थ, पहला मंदिर : साध्वी डॉ गवेषणाश्री

Sagevaani.com /चेन्नई: आचार्य महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी डॉ गवेषणाश्रीजी ने जैन तेरापंथ नगर, माधावरम् के तीर्थंकर समवसरण में फरमाया कि दुनिया में अनेक बड़े बड़े तीर्थ है, हर तीर्थ पर काफी मात्रा में भीड़ होती है, लाइन लगानी पड़ती है, किंतु दुनिया का जीता जागता तीर्थ और मंदिर है- माँ। गणेशजी का शरीर भारी था, तीनों लोक की यात्रा करनी थी, किंतु उन्होंने अपने माता-पिता की 3 बार परिक्रमा की और विजय को प्राप्त हुए। जो माँ की परिक्रमा कर लेता है वह सबसे बड़े तीर्थ की यात्रा कर लेता है।

माँ मंदिर है, माँ मूरत है, माँ पूजा की जाती है। ठाणं सूत्र में कहा गया है कि तीन व्यक्तियों के ऋण से कोई उऋण नहीं हो सकते वो है- माता, पिता और गुरु। उसमें भी सबसे पहले माँ को स्थान दिया है। माँ की ममता विशाल बरगद की तरह होती है, जिसके शीतल छांव में बैठकर व्यक्ति सुकून की अनुभूति कर सकता है।

 साध्वीश्री मयंकप्रभाजी ने फरमाया कि सागर का जल खारा रहता है, पर माँ का दूध कभी खारा नहीं होता। चन्द्रमा में दाग हो सकता है, पर मां के प्यार स्नेह में कभी दाग नहीं होता। माँ हमारे जीवन की सबसे पहली पाठशाला है। माँ के आंचल में दुनिया की सारी खुशियां समायी हुई है।

साध्वी श्री मेरुप्रभाजी ने ‘मां की महिमा गा न सके कोई’ सुमधुर स्वरों के साथ प्रस्तुति दी। साध्वी श्री दक्षप्रभाजी ने कुशलता पूर्वक कार्यक्रम का संचालन किया।

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