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माँ ममता का महाकाव्य : मुनि सुvधाकरजी

माँ ममता का महाकाव्य : मुनि सुvधाकरजी

मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति में माँ की ममता पर समायोजित हुआ सेमिनार

 माधावरम्, चेन्नई 07.08.2022 ;  माँ के चरणों में स्वर्ग हैं। उनके पैरों के नीचे की मिट्टी स्वर्ग की मिट्टी के समान है। माँ एक पूर्ण शब्द है, अकट्य गंथ हैं, ममता का महाकाव्य है। उपरोक्त विचार श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी माधावरम् ट्रस्ट द्वारा समायोजित “माँ की ममता, माँ की महिमा” सेमिनार में उपस्थित विशाल जनमेदनी को सम्बोधित करते हुए मुनि श्री सुधाकरजी ने जय समवसरण, जैन तेरापंथ नगर, माधावरम् में कहें।
मुख्य अतिथि मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश श्री मुनिश्वरजी भण्डारी की विशेष उपस्थिति में मुनि श्री ने कहा कि माँ ममता की मूरत है, समता की सूरत है, त्याग की प्रतिमूर्ति है। आकाश का कोई ओर-शोर नही है, वैसे ही माँ की महिमा का अन्त नहीं है, वह अपार है, अमाप्य है। माँ एक विश्वविद्यालय है। विश्व के सभी ग्रंथ और धर्म में मां की महिमा गाई गई है। मां की ममता अद्भुत, अद्वितीय, अप्रतिम है। मां त्यागमयी, दयामयी, क्षमामयी, सत्यमयी और स्नेहमयी होती है।

   माँ ही हमारे लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश

   भावविभोर करने वाले भावों से माँ की तुलना करते हुए मुनि श्री ने कहा कि सूर्य तो केवल प्रकाश करता है, लेकिन माँ ने मुझे अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया, चांद में तो दाग है, पर मेरी माँ तो बेदाग है। समुद्र विशाल होते हुए भी उसका पानी खारा है, परन्तु माँ का दुध तो अमृत से भी मिठा है। माँ अक्षर दो शब्दों के मिश्रण से बना है – म यानी महावीर, मोहम्मद, अ यानी आदेश्वर, आदिनाथ। माँ हमें जन्म देती है, लालन-पालन करती है, उद्धार करती हैं, इसलिए माँ ही हमारे लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश है।

   वृद्धों को आश्रम की नहीं, आश्रय की जरूरत

  सम्पूर्ण धर्म परिषद् को विशेष प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए मुनि श्री ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति में ऋषि मुनि ने चार आश्रम की व्यवस्था की थी। यह वृद्धाश्रम कहां से आया, पता नहीं। यह हमारी संस्कृति व संस्कार का शब्द नहीं है। वृद्धाश्रम आयात शब्द है। पाश्चात्य देशों से आया है। वृद्धों को आश्रम की नहीं, आश्रय की जरूरत है। वृद्धाश्रम देश की अस्मिता पर कलंक है। जो अपने माता-पिता की सेवा नहीं कर सकते उन्हें जीवन में कभी सुख, शांति, प्रसन्नता नसीब नहीं हो सकती, नहीं होती है।

  परिवार को माला में पिरो कर रखती महिला

  मुख्य अतिथि मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर भंडारी ने कहा कि महिला परिवार में सूत्रधार के रुप में होती है, परिवार को एक माला में पिरो कर रखती हैं, एक दूसरे के मन-मुटाव को मिटाने वाली होती हैं। वह माँ, बहन, भाभी, पत्नी अनेक रूपों में होती है। अपने कर्तव्य का सम्यग नियोजन करती हैं। उन्होंने कहा कि मेरी समाज की बहनों से विशेष निवेदन है कि वे परिवार को जोड़ने वाली बने।

अपने संस्कार और संस्कृति का सही उपयोग कर एक उदाहरण तुल्य बने। मुनि नरेशकुमारजी ने कहा कि व्यक्ति में धार्मिकता, प्रमाणिकता, ईमानदारी उनके जीवन व्यवहार में झलके। विशिष्ट अतिथि राज्य अल्पसंख्यक आयोग सदस्य श्री प्यारेलाल पितलिया, स्वरूप चन्द दाँती ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। माधावरम् ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी घीसूलालजी बोहरा ने स्वागत स्वर प्रस्तुत किया। माधावरम् की महिलाओं ने मंगलाचरण किया। मूलचन्द रांका ने मुख्य न्यायाधीश का परिचय दिया। धन्यवाद ज्ञापन हर्षा परमार और कुशल संचालन प्रेक्षिता सकलेचा एवं सुरेश रांका ने किया। इस अवसर पर संघीय संस्थाओं के गणमान्य व्यक्तियों के साथ, जैनेत्तर समाज के व्यक्ति भी अच्छी संख्या में सहभागी बने। ट्रस्ट मण्डल द्वारा मुख्य न्यायाधीश, श्रीमती करुणा भण्डारी, सेमिनार के प्रायोजक श्री अशोककुमारजी परमार एवं अन्यों का अभिनन्दन किया गया। आगामी 21 अगस्त को आयोजित कार्यक्रम के बेनर का अनावरण किया गया। कार्यक्रम के पश्चात मुख्य न्यायाधीश महोदय ने मुनि श्री से समसामयिक विषयों पर चर्चा परिचर्चा की।

            स्वरुप चन्द दाँती
मीडिया प्रभारी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ ट्रस्ट, माधावरम्

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