भारत का दक्षिण हिस्से में अवस्थित तमिलनाडु राज्य। जहां लगभग साल के बारह महीने ही गर्मी का अनुभव होता है। आम तौर पर देखा जाए तो जुलाई, अगस्त व सितम्बर माह में भी यहां का तापमान न्यूनतम 30 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस के आसपास होता है, किन्तु जब से जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता भगवान महावीर के प्रतिनिधि अखण्ड परिव्राजक महातपस्वी शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के साथ शांति का संदेश देते हुए तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में पधारे तब से मानों वातावरण का मिजाज भी बदला-बदला-सा नजर आ रहा है।
सूर्य का आतप जहां लोगों को झुलसाने वाला होता है, वह आज सूरज आजकल ज्यादातर बादलों की ओट में अदृश्य रहता है। कभी तेज निकला भी तो आसमान में बादल उमड़ आते हैं और तपती धरती को अपने जल से अभिसिंचित कर वातावरण में को पुनः सुहावना बना देते हैं। ऐसा यहां के लोगों का मानना भी है कि मानों प्रकृति भी प्रखरता को छोड़ सुहावनेपन को धारण कर ली है।
ऐसा हो भी क्यों आखिर चेन्नई महानगर के माधावरम में चतुर्मास कर रहे शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने भव्य ‘महाश्रमण समवसरण’ से नियमित रूप से आगमवाणी के माध्यम से प्रवचन करते हैं। आचार्यश्री के श्रीमुख से निरंतर बहने वाली ज्ञानगंगा जहां लोगों के मानस को पावनता प्रदान कर रही है तो वहीं वातावरण पर शायद अपना विशेष प्रभाव छोड़ रही है। नियमित से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित होते हैं और आगमवाणी का श्रवण कर मानों अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं। पचास वर्षों के पश्चात् मिले इस सुअवसर को चेन्नईवासी दोनों हाथों से समेटने में लगे हुए हैं।
सोमवार को महाश्रमण समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने ‘ठाणं’ आगम में वर्णित दो तीर्थंकरों 19वें तीर्थंकर भगवान मल्लीनाथ तथा 23वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ के श्याम वर्ण का वर्णन करते हुए कहा कि तपस्वी की तप से साधना लोग आकर्षित होते हैं। तपस्या से जहां कर्मों की निर्जरा होती है, वहीं कुछ सिद्धि भी प्राप्त हो जाती है।
तपस्या से अनुग्रह और निग्रह की बात भी हो सकती है। भगवान पाश्र्वनाथ काफी लोकप्रिय हैं। कितना उनका नाम जप किया जाता है। उनकी स्तुति आदि में उवसग्गहर स्तोत्र का वाचन करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि एक बार उन्होंने गृहस्थावस्था में ही अपने अवधिज्ञान से नाग-नागीन को जलने से बचाया और उन्हें मंगलपाठ सुनाया था। इस प्रकार उनका उद्धार हो गया था। आचार्यश्री ने ‘प्रभु पाश्र्वदेव चरणों में’ गीत का आंशिक संगान भी किया।
आचार्यश्री की मंगल सन्न्धिि में कुछ दिन पूर्व ही ‘श्राविका गौरव’ अलंकरण प्राप्त श्रीमती रजनी दूगड़ का देहावसान हो गया था। जिनकी स्मृति सभा प्रवचन पंडाल में ही आयोजित हुई। आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं पर कृपा कराते हुए प्रवचन पश्चात पुनः विराजमान हुए और कहा कि इस दुनिया का अटल नियम है कि जन्म लेने वाला एक दिन अवसान को प्राप्त होता है। शरीर नश्वर है, इसलिए मृत्यु निश्चित है। आत्मा अविनश्वर और अमर है।
परिवार जनों में खूब हिम्मत रहे, मन में शांति रहे और चतुर्मास का धार्मिक लाभ उठाने का प्रयास हो। आचार्यश्री ने उनके तीनों पुत्रों को मां के संस्कारों पर जितना संभव हो चलने की भी पावन प्रेरणा प्रदान की। मुनिश्री दिनेशकुमारजी ने अपना वक्तव्य दिया। इस सभा में चेन्नई महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती कमला गेलड़ा, प्रवास व्यवस्था समिति के आवास व्यवस्थापक श्री पुखराज बड़ोला व रजनीदेवी दूगड़ के पुत्र श्री प्रदीप दूगड़ ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।