महावीर कथा का हुआ शुभारंभ
चेन्नई. आज के युग में अनेक स्थानों पर लोग ‘श्री अन्तकृत सूत्र, श्री कल्प सूत्र’ एवं ‘श्री उत्तराध्ययन सूत्र अथवा 32 आगम (धर्म ग्रंथ) सिर पर उठाकर वरघोड़ा निकालते हैं। अच्छी बात है। परंतु हमें केवल प्रभु महावीर की या महावीर वाणी (जिनवाणी) की पूजा ही नहीं करनी है अपितु प्रभु महावीर से लोककल्याणकारी जीवन जीने की प्रेरणा भी लेनी है।
यह विचार ओजस्वी प्रवचनकार डा.वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में उपस्थित श्रद्धालु भाई- बहनों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने महावीर कथा का शुभारंभ करते फरमाया प्रभु महावीर की जीवन गाथा मानव से महामानव बनने की प्रेरणा देती है। जो केवल अपने लिए जीता है वह पशु तुल्य होता है जो दूसरों के लिए जीता है वह मानव होता है और जो स्वयं दु:खों की आग में तप कर दूसरों को सुखी बनाने का प्रयास करता है वही महामानव होता है। प्रभु महावीर ने पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति व त्रस ( छोटे-बड़े) सभी जीवों को अपनी आत्मा के समान माना। नारी जाति का उन्होंने उद्धार किया। दास प्रथा के विरुद्ध उन्होंने आवाज उठाई।
गुरुदेव ने कहा यूं तो महावीर की चेतना ने अनंत बार जन्म-मरण किया होगा परंतु नयसार के भव में उन्हें क्षणभर के लिए संतों का सत्संग प्राप्त हुआ। भक्ति भाव से नयसार ने संतों को आहार दान दिया। श्रद्धा की उस परम पराकाष्ठा से संवेग के पलों में नयसार को सम्यकत्व (सम्यक दृष्टि) की प्राप्ति हुई। यह प्रभु महावीर की चेतना क अध्यात्म के चरण का प्रथम सोपान बना। जिसने 25 भवों जन्मों के पश्चात वर्धमान महावीर को तीर्थंकर जैसे अध्यात्म के सर्वोच्च शिखर पर प्रतिष्ठित किया। रुपेश मुनि ने श्रीमद् उत्तराध्ययन जी श्रुतदेव की मूल आराधना एवं लोकेश मुनि ने भावार्थ की वाचना बहुत ही सुंदरतम ढंग से प्रस्तुत की। श्रमण संघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि जी म. की द्वितीय पुण्यतिथि पर एवं उपाध्याय प्रवीण ऋषि जी म. की जन्म जयंति पर गुरुदेव ने उनके गरिमामयी जीवन पर ओजस्वी शब्दों में प्रकाश डाला।