अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी कुमुदलता ने मां की ममता, मां का उपकार व वात्सल्य पर प्रेरक उद्बोदन देते हुए कहा कि महापुरुष मां से बड़ा नहीं होता। मां की ममता, वात्सल्य, उपकार, त्याग आदि का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता और भुलाया नहीं जा सकता।
उन्होंने एक मार्मिक प्रसंग के माध्यम से मां के वात्सल्य का वर्णन करते हुए कहा कि बच्चे भले ही मां का तिरस्कार कर दें लेकिन मां हमेशा अपने बच्चों को प्यार ही बांटती है। मां बच्चों के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है। मां की ममता ऐसी होती है कि अगर बच्चा रोता है तो मां भी रो देती है और बच्चे के हंसने पर मुस्कुराती है।
दुनिया के किसी भी शब्दकोश में मां से बड़ा शब्द नहीं है। सागर की गहराई, सूर्य की किरणें, चांद की चांदनी से भी अगर मां का उपमा दी जाए तो यह भी कम है। दुनिया में कई महान संत पुरुष हुए हैं लेकिन मां से बड़ा कोई नहीं। भारत की इस धरती पर राम, कृष्ण, गणेश, ऋषभदेव, महावीर स्वामी सहित कई महापुरुषों को जन्म देने वाली भी एक मां ही है।
अगर व्यक्ति ने मां की पूजा कर ली तो यह समझना चाहिए कि उसने त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा कर ली। उन्होंने कहा, पर्वाधिराज पर्यूषण के पावन अवसर पर मैं आह्वान करना चाहती हूं कि कभी भी मां-बाप का तिरस्कार नहीं करें, उनकी पूजा और सेवा करें।
आगम वाणी के माध्यम से दान का महत्व बताया कि दान देने और दिलवान से अनंत पुण्यों का उदय होता है। संग्रह के साथ-साथ हमें विसर्जन करना भी सीखना चाहिए। देवकी के दान का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि दान की भावना के जरिये उनको तीर्थंकर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
अगर कोई व्यक्ति नाम के लिए भी दान करता है तो वह भी प्रेरणादायी होता है क्योंकि उससे दूसरे भी दान देने के प्रति प्रेरित होते हैं। भगवान महावीर ने अधिक अधिग्रह को भी पाप बताया है इसलिए जितना संभव हो शुभ कार्यों के दान कर कर्मों की निर्जरा करनी चाहिए।
साध्वी महाप्रज्ञा ने प्रेरक गीतिकाओं के माध्यम से मां-बाप के स्नेह, प्यार व वात्सल्य की महिमा का गुणगान किया। इस मौके पर गुरु दिवाकर कमला वर्षावास समिति के चेयरमैन सुनील खेतपालिया, अध्यक्ष पवनकुमार कोचेटा, महामंत्री हस्तीमल खटोड़, गौतम ओसवाल तथा सुरेश डूंगरवाल, माणकचंद खाबिया उपस्थित थे।