ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि धर्म शास्त्र और इतिहास साक्षी है कि जब जब भी महापुरुषो का जन्म हुआ है तब तब अर्धम, अनीति व् अत्याचारी भी पैदा हुआ है।
परनतु अंत में विजय तो सत्य धर्म न्याय की ही हुई है। राम के साथ रावण, कृष्ण ,के समय कंश ,महावीर के लिए गोशालक ,और महात्मा गाँधी के विरोध में गोडसे हुए।
कर्मो की नियति या भाग्य की विडंबना कहें की कर्म योगी करुणावतार कृष्ण वासुदेव का जन्म कंश के कैदखाने में हुआ। किन्तु संकटविमोचन बनकर जगत के बंधनो को तोड़ते हुए जगत के जीव को मुक्ति की राह बताई गयी।
अत्याचार पर करुणा ,अधर्म पर धर्म , अन्याय पर न्याय को प्रतिठित किया। कृष्ण वासुदेव ने न केवल अपने शत्रु कंस ,दुरयोधन ,पूतना , कालिया आदि नाश नहीं किया अपने आंतरिक शत्रु क्रोधादि कषाय अदि पर भी विजय प्राप्त किया।
चओवीसी में अभय नाम के तीर्थकर बनकर प्राणी मात्रा कल्याण करेंगें उन्हें जन्म से ही चुनौतियां और बिपतिया मिली तो माता पिता से दूर रहे। कृष्णा वासुदेव जैन त्रितकर भगवन नेमिनाथ के चचेरे भाई भी थे। उन्होंने सयम और विक्षा राजकीय सहयोग दिया। बृद्ध जानो को आदर, दुष्टो को सबक, दिन के प्रति करुणा भाव रखकर जगत प्रिये बने।
उनकी लीला को आज भी गयी जाती है। उनके गुणों को अपना कर जीवन को सुभाषित बनाना है। एहि जन्म अष्टमी मानाने का सार है। एक ही घर में जन्मे दो महापुरुषों में से एक नेमि नाथ भगवन ने जैन धर्म पर राज किया और कृष्ण ने हिन्दू धर्म पर।
जिन्होंने न तो सन्यास लिए और न कोई साधना की फिर भी वह भगवन की तरह पूजे गए। उन्होंने जो किया वह इतिहास बना , जो कहा वो गीता बानी। जो जिया वो रास लीला बन गयी।
श्री कृष्ण ने सलाखों में जनम लेकर भी धरती को प्रेम और मधुर का सन्देश दिया और दुश्मनो के धार में जन्म लेकर दुशमनो को पछारा।
कृष्ण शाश्त्र हमें प्रेरणा देता है की हम कषायो को पतला करे कषाय दूर होगा तो मोक्ष प्राप्त होगा। इस अवसर पर श्री मति अर्चना एवं विनीता पोखरना उपबास प्रत्याख्यान लिए।