चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधा’ ने कहा सुखी और आनन्दमय जीवन के लिए वेद, उपनिषद और सभी धर्मशास्त्रों में सार-स्वरूप चार सूत्र बताए गए हैं- पहला छोटों को देखकर जीएं, दूसरा बड़ों को देखकर बढ़ें, तीसरा अच्छे के लिए प्रयास करें और चौथा बुरे के लिए तैयार रहें।
आज का आदमी स्वयं से छोटे और अभावग्रस्त लोगों को देखकर जीएं तो उसका आधा दुख दूर हो सकता है, अपने से कम पद, प्रतिष्ठा और संपत्ति वालों को देखने पर आपको लगेगा कि मैं ज्यादा अमीर हंू। कामनाएं, इच्छाएं बढऩे से इस दुनिया में अमीर भी गरीब बनता जा रहा है।
जीवन अशांत न बने इसके लिए सबका सम्मान करें, एक तिनके का भी अपमान न करें। छोटा और नम्र व्यक्ति प्रभु के नजदीक होता है, जबकि जो अहंकारी होता है वह प्रभु से दूर रहता है।
स्वयं से बड़े लोगों को देखकर आगे बढ़ें, महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लें, स्वयं में परिवर्तन लाएं। उन्होंने जैसा जीवन जीया वैसा जीएं। हमारा देश धर्मप्रधान देश है लेकिन आजकल संवेदना नहीं बची है।
साध्वी डॉ.उन्नतिप्रभा ने कहा वीतराग प्रभु ने अपने केवलज्ञान प्रकरण में इस सत्य को प्रत्यक्ष रूप से देख भव्य जीवों को कहा कि मनुष्य भव कितना दुर्लभ है जो हमें शुभाशुभ कर्मों से जन्म से मृत्यु तक का समय मिला है। मृत्यु कब किस रास्ते आए पता नहीं, कोई इससे नहीं बच सकता। इस समय की अनमोलता को पहचानना होगा।
समय नदी के जल के समान गतिशील है, जो जल बंूदें एक बार आगे बढ़ गई वे पुन: लौटकर आनेवाली नहीं है। बचपन बीता, जवानी भी बीत रही है और बुढ़ापा भी आनेवाला है। खाने-पीने, मौज-मस्ती में समय नहीं गंवाना है। जिसकी चेतना जाग्रत है वह सजगता से जीवन को सार्थक कर लेता है।
अनन्त काल से मनुष्य जीवन का महत्व नहीं समझ रहे हैं और भव भ्रमण कर रहे हैं। बीती घटनाओं का स्मरण करने, स्वयं के सुख से सुखी होने के बजाय पर के सुख से दुखी होने से जीवन में ईष्र्या, क्रोध बढ़ रहा है। खुली आंखों से सुनहरे स्वप्न देखता है और जब आंखें बंद होगी तब न जाने किस गति में पहुंच जाएंगे।
धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। २५ सितम्बर से आचार्य शिवमुनि की प्रेरणा से संचालित त्रिदिवसीय आत्मध्यान साधना शिविर होगा।