मरुधर केसरी व लोकमान्य संत की जयंती मनाई
चेन्नई. रविवार को पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल सेन्टर में उमराव ‘अर्चना’ सुशिष्या मंडल साध्वी कंचनकंवर के सानिध्य में आचार्य मरुधर केसरी मिश्रीमलजी महाराज व लोकमान्य संत रूपमुनिजी महाराज की जयंती मनाई गई।
साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधा’ ने संसार में तीन तरह के मानव बताए। पहले- जो किसी कार्य में अपना नाम होने की इच्छा नहीं रखते। दूसरे- अच्छे कार्य तो करते हैं लेकिन अपने यश की इच्छा रखते हैं। तीसरे-कुछ नहीं करते, केवल यश चाहते हैं। यह मानव की उत्कृष्ट, मध्यम और निकृष्ट श्रेणियां है। पहली श्रेणी के महापुरुषों का हृदय मां के समान होता है जिसकी ममता हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते। आचार्य मरुधर केसरी मिश्रीमलजी व लोकमान्य संत रूपमुनिजी का व्यवहार मानव की प्रथम उत्कृष्ट श्रेणी का था।
आचार्य मिश्रीमलजी की 5 वर्ष की आयु में माता से वियोग और पिता द्वारा पालन-पोषण हुआ तथा 12 वर्ष की आयु में गुरु मानमलजी, बुधमलजी की सेवा में पहुंचे। उन्होंने आगम, संस्कृत, गणित, ज्योतिष का अध्ययन किया तथा वि.सं.1975 में दीक्षा ली। उन्होंने नवकार महामंत्र की सही व्याख्या कर जन-मन को भ्रमित होने से बचाया। लोकमान्य संत रूपचंदजी महाराज महासती उमराव कंवर के गुरुभाई थे तथा हम सभी पर सदैव उनकी कृपा रही है। वे जीवन में सरल, सहज और दयालु थे, उन्होंने अनेकों गौशालाएं, धर्मशालाएं, अस्पताल खुलवाकर अनेकों जीवों को साता पहुंचाई।
उनका जीवन अनुकंपा और अहिंसा से ओतप्रोत था। हम सभी उन महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा ग्रहण करें। जो सरल होते हैं वही साधना में आगे बढ़ते हैं। महापुरुषों के अनुकरण से जीवन धन्य बनता है।
साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशु’ ने कहा कि आज दो महापुरुषों की जयंती हम मना रहे हैं, वे दोनों ही मिट्टी के गोले की तरह मुश्किलों में तपकर और ज्यादा सुदृढ़ व मजबूत बनकर निखरे।
जो स्वयं के लिए जीता है, एक दिन मरण को प्राप्त होता है लेकिन जो दूसरों के लिए जीता है वह सदैव स्मरण होता है। आचार्य मरुधर केसरी व लोकमान्य संत दोनों ही सदा दूसरों के लिए जिए थे।
गुरु मिश्री को नेतृत्व कुशलता से मरुधर केसरी की उपाधि से अलंकृत किए गए। उनके विराट व्यक्तित्व का श्रमण संघ में उनका योगदान सदा प्रात:स्मरणीय है। साधना ही इंसान को भगवान बनाती है। उन्होंने साधना पथ पर कष्टों का सामना पुरुषार्थ से किया। वे जीवन में संस्कार, पुरुषार्थ का पाथेय ले ज्ञान, साधना मार्ग पर बढ़ चले तथा जग में शांति और आध्यात्मिकता का बिगुल बजाया व कुरीतियों पर आवाज उठाई। सभी धर्म और परंपराओं के मनुष्य उनके पास आकर अपार शांति और आश्रय का अनुभव करते थे। ऐसे विरले संतों के ही पुण्यप्रताप से भारत देश में धर्म, शांति और अहिंसा बनी रही है।
लोकमान्य संत रूपचंदजी सर, सरस, कोमल तथा वचनसिद्ध थे जिन्हें शेरे राजस्थान और प्रवर्तक की उपाधि से अलंकृत किया गया। वे राजस्थान के पाली के नाडोल गांव में गोस्वामी जाति में जन्मे। उन्होंने जीवन में अनेकों घोर दीर्घ तपस्याएं की और उसकी ऊर्जा को जन कल्याण में प्रयोग किया। विघ्न निवारक छत्र जैसा था जिसमें सभी साधु-साध्वी-संघ सुरक्षित थे।
साध्वी उन्नतिप्रभा ने गुरु भजन द्वारा गुरुजनों को अपनी श्रद्धांजलि दी। मंत्री शांतिलाल सिंघवी, अशोक मरलेचा, अजीत सुराणा, पारसमल नाहर, उत्तम कोठारी, जुगराज बोरूंदिया, गौतमचंद, हस्तीमल खटोड़, चेतन पटवा ने अपने विचार व्यक्त किए।
धर्मसभा में चातुर्मास समिति के अध्यक्ष के.नवरतनमल चोरडिय़ा, पारसमल सुराणा, जेठमल चोरडिय़ा, हीराचंद पींचा सहित प्रकाश गुलेछा, रमेश कांकलिया, प्रेमचंद बेताला, हनुमान बोथरा, पदमचंद सुराणा, सिद्धेचंद लोढ़ा आदि अनेक स्थानों से लोग उपस्थित रहे।
चातुर्मास समिति द्वारा महावीर तालेड़ा के 27 पच्चखान लिए और सुभाष खांटेड ने ३७वें मासखमण की 28 उपवास है। एपीएल प्रतियोगिता, अक्षर मिलाओ प्रतियोगिता और सुखविपाक सूत्र परीक्षा के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। 12 अगस्त को आयंबिल तप और प्रात: बकराईद पर निरीह पशुओं की आत्मा की शांति के लिए जाप रहेगा।