समता भवन तोंडयारपेट में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा कि अगर कोई भी साधक उत्कृष्ट भाव से महापुरुषों की स्तुति करता है एवं उनके गुणगान करता है तो उससे जीवन में आने वाली हर प्रकार की बाधा रुकावट एवं अड़चन दूर हो जाती है ।
भक्तों की भक्ति के कारण से जब गुरु की शक्ति साथ में जुड़ जाती है तो असंभव से असंभव कार्य भी संभव हो जाता है । संकट के समय दूसरा कोई मदद करें या नहीं लेकिन अंतर हृदय से प्रभु का नाम स्मरण कर लिया जाता है तो उससे स्वतः ही हर कार्य सिद्ध हो जाते हैं ।
स्तुति करने से जीव की पुण्यवानी बढ़ती है । धर्म उस चिंतामणि रत्न एवं कल्पवृक्ष के समान है जिसके द्वारा सभी इच्छाओं की स्वतः ही पूर्ति हो जाती है।
मुनि ने जय जाप की एक कड़ी का उल्लेख करते हुए कहा कि गुरु के अदृश्य शक्ति यदि जुड़ जाती है तो बिगड़ा हुआ काम भी बन जाता है । गुरु को सच्चे गुरु को सबसे बड़ा पालनहार एवं तारणहार की उपमा दी जाती है। किसी भी कार्य में बाधा उपस्थित होना यह जीव के स्वयं कृत अंतराय कर्म का कारण होता है। जो जिस क्षेत्र में दूसरों को बाधा देता है उसे पुनः उसी चीज में बाधा आती है ।
एक समान श्रम करने पर भी कर्म के कारण से परिणाम में अंतर दृष्टिगोचर होता है । बाधा आने पर डरने की बजाय उसका सामना करना चाहिए । संघर्ष की परिस्थिति में जीतने वाला ही जीवन में सफल हो सकता है। अवरोध सफलता का प्रथम सोपान होता है। धर्म की शरण में जाने से सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है । धर्म एवं गुरु ही सच्चे रक्षक होते हैं।
हर आत्मा में अनंत शक्ति विद्यमान होती है, लेकिन कर्मो के कारण वहां शक्ति अवरुद्ध हो जाती है। यदि जीव अपनी उस शक्ति को भीतर से जागृत कर लेता है तो सारे अवरोध मिट जाते हैं। पुरुषार्थ करने से ही सफलता प्राप्त हो सकती है।
मुनि वृंद यहां 10 तारिक तक विराजेंगे।