चेन्नई. पर्युषण महापर्व 8 दिनों तक तप-त्याग पूर्वक मनाए जाते हैं। आठवें दिन को ‘महापर्व संवत्सरी’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन वर्ष भर के स्वकृत, पापों की आलोचना की जाती है एवं क्षमा का आदान-प्रदान होता है। आत्म शुद्धि का पर्व होने से इसे ‘पर्वों का महाराजा” भी कहा जाता है। यह विचार ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में चल रही पर्युषण महापर्व आराधना के अवसर पर व्यक्त किए।
उन्होंने कहा इस वर्ष 31 अगस्त ही के दिन उत्तर भारतीय प्रवर्तक श्रुताचार्य, गुरुदेव अमर मुनि जी म. की जयंति भी मनाई जाएगी। महापर्व संवत्सरी की आराधना भी 31 अगस्त को पौषध, उपवास, प्रार्थना, प्रवचन, प्रतिक्रमण आदि अनेक रूपों में की जाएगी। गुरुदेव ने श्रीमद् अन्तकृत दशा सूत्र में अर्जुनमाली का जीवन चरित्र बड़े ही रोचक ढंग से सुनाते हुए कहा कि वह भले ही कितने बड़े पापी आत्मा थे परंतु प्रभु महावीर की वाणी श्रवण कर वे आत्मा से महात्मा और महात्मा से परमात्मा बन गए। प्रभु महावीर की वाणी का नारा है कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। आज जो पापी है वह कल पुण्यात्मा भी बन सकता है। दूसरी ओर सेठ सुदर्शन का जीवन देखिए, जिनके शरीर का दिव्य तेज देखकर अर्जुनमाली के शरीर से यक्ष भी जाने को मजबूर हो गया। श्रावक की शक्ति को कम मत समझो। यह सुदर्शन श्रावक की संगति का ही असर था कि अर्जुन माली को भगवान महावीर का समोसरण प्राप्त हुआ।
जब अर्जुनमाली साधु बने और भिक्षा मांगने जाते तो कोई उन्हें पत्थर मारता, कोई लाठी और कोई-कोई तो उनपर थूक देते तथा गालियां देते। परंतु अर्जुनमाली अणगार क्षमा भाव की, समता व तितिक्षा की साधना करते गए और 6 महीने तक पाप कर्मों का जो बंधन बांधा था उन कर्मों को छह महीने की तप आराधना से काट दिया तथा केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गए। इसी के साथ सच्चा श्रमण कौन होता है यह भी उनके उदाहरण देकर उन्होंने स्पष्ट किया। रूपेश मुनि ने भगवान महावीर जन्म कल्याणक की वाचना तथा महिला-युवती- बहु मंडल की ओर से प्रभु महावीर की जीवन नाटिका बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत की गई। प्रवचन सभा के उपरांत मातृ शक्ति द्वारा प्रभावना वितरित की गई।