कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): मानवता के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले मानवता के मसीहा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, विश्व संत महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में भारत सहित 14 देशों के श्रद्धालुओं को हुजूम उमड़ा तो बेंगलुरु की धरती पर एक और नया स्वर्णिम अध्याय जुड़ गया।
पहली बार तेरापंथ धर्मसंघ की ‘संस्था शिरोमणि’ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में तेरापंथ के इतिहास का पहला एन.आर.आई. समिट में तेरह देशों के अप्रवासी भारतीय उपस्थित हुए। जिन्हें आचार्यश्री के दर्शन, प्रवचन श्रवण और उपासना का अवसर प्राप्त हुआ। ऐसा सुअवसर प्राप्त कर सभी अप्रवासी भारतीय प्रफुल्लित नजर आ रहे थे।
शनिवार को आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र की फिजा कुछ बदली-बदली-सी थी। आज मौका था तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में पहली बार एक साथ तेरह देशों में वर्षों से निवास करने वाले लगभग 113 अप्रवासी भारतीय आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में महासभा द्वारा ‘कनेक्ट’ थीम पर आयोजित प्रथम एन.आर.आई. समिट में भाग लेने पहुंच रहे थे। उनके आने का क्रम सुबह से ही प्रारम्भ हो गया था। इस समिट के संयोजक व प्रायोजक श्री सुरेन्द्र पटावरी के नेतृत्व में कन्या मण्डल व किशोर मण्डल के सदस्यों ने आने वाले संभागियों को तिलक लगाकर व माला पहना कर स्वागत कर रहे थे। अपने इस तरह के स्वागत से आनंदित अप्रवासी श्रद्धालुओं के लिए शायद यह पहला अवसर था, जब वे एक साथ अपने आराध्य की पावन सन्निधि में उपस्थित थे।
नित्य की भांति आचार्यश्री अपने प्रवास कक्ष से प्रवचन पंडाल के बाहर पधारे तो सभी अप्रवासी तेरापंथी सदस्यों ने अपने-अपने प्रवासित देश के ध्वज के साथ अपने आराध्य का अभिनन्दन किया। आचार्यश्री मंच पर पधारे तो पूरा वातावरण जयकारों से गुंजायमान हो उठा। आज मंच पर भी भारत सहित आॅस्ट्रिया, अफ्रीका, बेल्जियम, कनाडा, हांगकांग, माॅरीशस, समोआ, सऊदी अरब, सिंगापुर, थईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम व संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के ध्वज लगे हुए थे। आज आचार्यश्री महाश्रमणजी विश्व संत के रूप में विराजमान थे।
अपने सामाजिक कार्यों, अर्थाजन, पढ़ाई आदि के कारण वर्षों से विदेशी धरती पर रहने वाले तेरापंथी श्रद्धालु ऐसे आध्यात्मिक माहौल में स्वयं को पाकर आनंदित, उत्साहित दिखाई दे रहे थे। सभी के चेहरे की प्रसन्नता इसका अहसास करा रही थी। वर्षों से अपनी सम्यता, संस्कृति, अपनी धरती, अपने देव, गुरु और धर्म को बसाए रखने वाले अप्रवासियों को तो इससे अपने संस्कारों को, अपने धार्मिक भावनाओं को पुष्ट बनाने का ऐतिहासिक अवसर था। उनकी निगहें जब भी प्रवचन पंडाल की ओर उठती इतने अपने साधर्मिकों को देख वे आश्चर्यचकित दिखाई दे रहे थे। उनकी भावनाओं का पुल बना और सात समन्दर पार से अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में पहुंच गए थे।
आचार्यश्री ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को ‘सम्बोधि’ ग्रन्थाधारित पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के मन में शांति और समाधि की इच्छा होती है। इसकी प्राप्ति का मार्ग दिखाते हुए ‘सम्बोधि’ में भगवान महावीर ने मुनि मेघ को बताया कि समाधि की प्राप्ति में तीन बाधाएं हैं-आधि, व्याधि और उपाधि। आधि-शारीरिक बीमारी कोई हो जाए तो आदमी को समाधि की प्राप्ति नहीं हो सकती।
व्याधि-यदि व्यक्ति के मन में मानसिक बीमारी हो जाए तो तो भी शांति-समाधि की प्राप्ति नहीं हो सकती। उपाधि-भावात्मक बीमारी जैसे राग-द्वेष, घृणा, मोह, आसक्ति हो जाए तो आदमी को शांति और समाधि की प्राप्ति नहीं हो सकती। समाधि और शांति प्राप्ति के लिए आदमी को समता की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। सुख-दुःख, हानि-लाभ, जन्म-मरण, मान-अपमान आदि जीवन की द्वंदात्मक परिस्थितियों में भी आदमी समता की साधना कर ले तो उसे समाधि-शांति की प्राप्ति हो सकती है।
आचार्यश्री ने ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ के माध्यम से आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के जीवन पर प्रकाश डालने के उपरान्त विदेशी धरती से उपस्थित श्रद्धालुओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज विदेशवासी भारतीयों का यह सम्मेलन है। देश, वेश और परिवेश में परिवर्तन हो सकता है, किन्तु संस्कारों में परिवर्तन नहीं होना चाहिए। आदमी को अपने नैतिक मूल्यों के प्रति जागरूक रहना चाहिए। यह समिट अपने धर्म व संस्कार से जोड़ने और जुड़ने का प्रयास है।
महासभा तो तेरापंथ धर्मसंघ की मां है और मां का काम तो जोड़ना ही होता है। आचार्यश्री ने इस दौरान अपने अनेक बालमुनियों के परिचय नवागंतुक अप्रवासी श्रद्धालुओं से करवाया। इस दौरान मुनि विनम्रकुमारजी ने आचार्यश्री से नौ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने भी धर्ममय आचरण करने की प्रेरणा प्रदान की।
कार्यक्रम के दौरान अप्रवासी श्रद्धालुओं को आचार्यश्री के श्रीमुख से सम्यक्त्व दीक्षा (गुरुधारणा) प्राप्त करने का सुअवसर मिला। इस समिट के संयोजक व प्रायोजक श्री सुरेन्द्र पटावारी तथा महासभा के महामंत्री श्री विनोद बैद ने अपनी हर्षाभिव्यक्ति दी। श्री राज कोठारी ने समिट के विषय में जानकारी दी। श्री रवि बांठिया ने आचार्यश्री के समक्ष 31 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
कार्यक्रम के उपरान्त महासभा के महामंत्री व समिट के संयोजक के अनुरोध पर ‘कनेक्ट’ थीम पर आयोजित एन.आर.आई. समिट के आयोजन स्थल पर आचार्यश्री पधारे। वहां आचार्यश्री ने अप्रवासी श्रद्धालुओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए आत्म कल्याण की दिशा में आगे बढ़ने, भौतिकावादी सुखमय जीवन को छोड़ थोड़ा कठोर जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि कल्पना जब संकल्प बनता है और संकल्प क्रियान्विति में परिणत होती है तो कल्पना मूर्त रूप ले सकती है। आचार्यश्री की इतनी कृपा और पावन पाथेय प्राप्त कर प्रत्येक अप्रवासी भारतीय स्वयं को कृतपुण्य महसूस कर रहा था।
*सूचना एवं प्रसारण विभाग*
*जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*