रायपुरम जैन भवन में विराजित पुज्य जयतिलक जी मरासा ने फरमाया कि आगार धर्म -करण, योग की मर्यादा अलग अलग है। मर्यादा के अनुसार परिवर्तन है वह आगार धर्म है। अणगार धर्म -नव कोटि से होता है! जब अकं क्षय हिन है स्थिर है अतः स्थिरता को प्राप्त करता है। अणगार धर्म को स्वीकार नहीं कर पाते है जब तक अणगार धर्म को अंगीकार कर मोक्ष मार्ग पर बढ़ते रहो। जैसे खेत की सुरक्षा के लिए बाड़ होती है वैसे आत्मा का सुरक्षा कावच है। अत: संसार में रहते हुए भी व्रत की आराधना करो! आठवाँ अनर्थदण्ड का विवेचन चल रहा है। बिना प्रयोजन के पाप को त्याग कर दो! प्रथम व्रत में आगार हिंसा की छुट दी है । अनजान में हुई हिंसा का आगार। जानबूझ कर मारना,पटकना, ठोकर आदि का त्याग है अनावश्यक कार्यों का त्याग है।
आवश्यकतानुसार साफ सफाई झटकना आदि का खुला है। जैसे कद्दू आदि अमावस को फोड़ने से एक जीव की बलि का दोष लगता है! जैन धर्म में इन बातों का निषेध है! जीव हिंसा भी होती है, मिथ्यात्व का दोष लगता है! इन कार्यों को त्याग कर दे! नजर उतारने के लिए नारियल बधारना, नींबू वारना आदि मिथ्यात्व है! यदि पुण्यवानी है तो इन कार्यों की आवश्यकता नहीं है! इन अपराधों से पाप बढ़ता है और आगे भोगना पड़ता है! यदि किसी के दबाव में ऐसे कार्य करना पड़े तो अगार है! स्त्रीकथा – भक्त कथा, देश कथा, राजकथा इन सबका भगवान ने निषेध किया है।
स्त्रीकथा से राग बढ़ता है स्त्री संबधी बातें सुनने से कामराग बढ़ता है! जैसे रामायण-सीता का रूप। जैसे स्त्री के सामने परपुरुष की, पुरुष के सामने स्त्री की वार्ता नही करना। भोजन की बातें भी बिना कारण नहीं करना। भक्त कथा करने से दोष लगेगा! इससे आरम्भ समारम्भ का दोष लगता है। किसी भी चीज का अच्छे बुरे का वर्णन नहीं करना! बिना प्रयोजन किसी से वार्तालाप करना नहीं । अशोक खटोड़ ने प्रवचन पर आधारित पांच प्रश्न पुछे सही उत्तर देने वाले सभी को ईनाम दिया गया।