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मन ही है जो भटकता है,और मनुष्य के जीवन को भटकाता है: महासती धर्मप्रभा

मन ही है जो भटकता है,और मनुष्य के जीवन को भटकाता है: महासती धर्मप्रभा

 मन को संभाल लो,जीवन सुधर जाएगा। सोमवार साहूकार पेठ के मरूधर केसरी दरबार मे महासती धर्मप्रभा ने सैकड़ों श्रोताओं को धर्म उपदेश प्रदान करेंगे हुए कहा कि इंसान का ये मन ही तो है जो पाप,पुण्य कराता है। जीवन को नेक और अनेक रास्तों पर ले जाता है। मन की पवित्रता से जीवन आगे बढ़ता है।परन्तु जीवन में मन ही है जो भटकता है,और मनुष्य के जीवन को भी भटकाता है। यदि मन वश में हो जाए तो मनुष्य जीवन का उत्थान करवा सकता है। तीर्थंकरो की वाणी हमनें कितनी ही बार सुनी, उसका मन पर फर्क नही पड़ता है। और मन पर असर भी नहीं करती है।

भगवती सूत्र मे बताया कि मन अति चंचल है उसे वश में करना अत्यंत कठिन है, परन्तु मनुष्य के लिए असंभव भी नहीं है। जब पत्थर की मूर्ति मंदिर में जाती है तो वह परमात्मा बन जाती है और हम मंदिर जाकर लौटते हुए जिदंगी बीत जाती है,लेकिन पत्थर ही बने रहते है। मनुष्य लगातार प्रयत्न एवं प्रयास करेगा तो मन पर ज्ञान का अंकुश लगाकर मन को वश मे कर सकता है।मन इंसान के तन का एक अदृश्य अंग है। जो मन है बहुरूपिया है एवं बहुत शक्तिशाली है।

इस मन के अनेक चेहरे हैं। मन अंहकारी भी है और बुद्धिमान भी है। मन जब अकड़ता है और कहता है मैं ही सबकुछ हूं,तब मन अहंकारी और शत्रु भी बन जाता है यह मन मनुष्य की आत्मा के बीच का सेतु भी मन ही है। मनुष्य अपने मन को नियंत्रित कर, स्वयं के भीतर प्रवेश कर, स्वयं को जानने का मनुष्य प्रयास करेगा,तो इस मन को वशीभूत कर लेगा तो अपनी आत्मा को महात्मा और महात्मा से आत्मा को परमात्मा मे बदल सकता है।

साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा कि मानव की आत्मा शुध्दिकरण भी करती है कर्मो के बंधन भी बांधती है आत्मा स्वंय कर्मो के प्रश्चाताप और निर्जरा करती है । मनुष्य को अपनी आत्मा का उध्दार स्वंय से ही है जो खुद तिरती है और दुसरों को तिरा सकती है। परमात्मा हमे मार्ग दिखा सकते है परन्तु चलना हमे ही पड़ेगा।अगर मनुष्य नियंत्रण मे होकर सामायिक करता है और सांसकारिक वस्तुओं और कयासों को छोड़कर त्याग करता है तो अपने मन और चित्त को शांत कर सकता है। चित्त मे शांति नही आई तो मनुष्य सामायिक कि साधना नहीं कर सकता है चित्त मे शांति हो जाए तो हमारी सामायिक शुध्द बन जाएगी।

सामायिक मनुष्य की आत्मा को ऊपर उठाती है अशुभ कर्मो से उसे मुक्त करवा करके अंहकार और घमंड को सायायिक कि साधना से मनुष्य दूर करके ज्ञान को प्राप्त कर सकता है। इसदौरान धर्मसभा में अनेक उपनगरों के अलावा बैगलोर,मुम्बई राजस्थान आदि क्षैत्रो के अतिथीयो और श्रध्दालुओं की उपस्थिति रही । बहन भाविका भंडारी ने साध्वी धर्मप्रभा से आठ उपवास के प्रत्याख्यान लिए जिसका श्री एस. एस. जैन संघ साहूकार पेठ के सभी पदाधिकारियों और महिला मंडल ने चुंदड़ी ओढ़ाकर समान करते हुए तप की अनूमोदना की।

प्रवक्ता सुनिल चपलोत

श्री एस. एस. जैन संघ साहूकार पेठ चैन्नाई

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