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मन से करते हुए पापों की संख्या अमर्यादित है: वैभवरत्नविजयजी म.सा.

मन से करते हुए पापों की संख्या अमर्यादित है: वैभवरत्नविजयजी म.सा.

🏰☔ *साक्षात्कार वर्षावास* ☔🏰

          *ता :27/7/2023 गुरुवार*

     श्री राजेन्द्र भवन चेन्नई विश्व वंदनीय प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत, दीक्षा दाणेश्वरी प.पू. युगप्रभावक आचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म. सा. के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा. का भव्य वर्षावास चल रहा है।

~ प्रभु महावीर स्वामी ने स्वयं के केवल ज्ञान में जीव की 84 लाख भिन्न-भिन्न स्थानों में जन्म, मरण, सुख-दुख की अवस्था देखी है।

~काया से करते हुए पापों की संख्या मर्यादित (limited) है किंतु मन से करते हुए पापों की संख्या अमर्यादित (unlimited) है ।

~ हमारे जीवन में आंतरिक परिवर्तन हो, दोषों का नाश हो, गलतियां मिट जाए वह हमारे जीवन की सफलता है।

~ क्रिया से जीवन में परिवर्तन आएगा यह निश्चित नहीं किंतु ज्ञान से जीवन में परिवर्तन अवयश्य ही आएगा।

~ धर्म करने के नाते हमारे जीवन में मूलभूत परिवर्तन आए तो हमारा जीवन धन्य है।

~ जीवन की सर्वश्रेठ अवस्था यह है की काया से कोई अपराध ना हो लेकिन मन से भी कोई भी अपराध ना हो।

~ जो साधक धर्म मे जुडा है उसके लिए धर्म का अनुभव होना ही चाहिए।

~ जब तक हमारा मन जगत के सर्व जीवो के लिए स्नेह, मैत्री, प्रेम आदि गुणों को ही देखने वाला नही होता है तब तक धर्म का अनुभव कठिन है।

~मन यदि सम्यक् विचारों से भरपूर बना है तब जीवन मे कितने भी दुःख आये मन हरपल समाधि मे ही रहता है।

~हम जब भी धर्म करे तब वो धर्म का मूल आत्म ज्ञान, मन शुध्दि ही होना चाहिए ।

~प. प. प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सूरीश्वरजी मा. ने स्वयं की शुद्ध साधना के बल से क्रियोद्धार, अखंड जप साधना, 930 अंजनशलाका ऐसे अनेक शासन रक्षा के कार्य किये थे (अभिधान राजेंद्र कोष लेखन) ।

    *”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*

🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪

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