चेन्नई. कोडम्बाक्कम वडपलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा अगर मनुष्य मन की साधना करे तो तन की साधना अपने आप ही हो जाएगी। वर्तमान में लोग मन की नहीं बल्कि तन की साधना करने में लगे हैं।
याद रहे अगर मन की साधना कर उसे सुंदर नहीं बनाया तो तन की साधना का कोई मतलब नहीं निकलेगा। मन की साधना करने के बाद तन की साधना करने की जरूरत नहीं होती। संसार में चार प्रकार के मन होते हैं जिमें अंधा मन, मृत मन, शुद्ध और रोगी मन आता है। अज्ञानी होने पर मनुष्य का मन अंधा मन हो जाता है।
अंधेपन में आकर मनुष्य को कुछ भी दिखाई नहीं देता है। वह दूसरो के प्रति गलत कार्य कर अपने जीवन को और अंधकार में लेकर चला जाता है। अंधे मन की वजह से मनुष्य को सही गलत दिखना बंद हो जाता है और गलत मार्ग पर बढ़ता जाता है। अंधे मन में मनुष्य मरना तो कबूल कर लेता है पर उसे छोड़ता नहीं है। अंधे मन की वजह से मनुष्य का मन मृत और रोगी बन जाता है।
जब मन रोगी होगा तो लोगों को सही चीज भी गलत और गलत वस्तु सही लगने लगती है। इस मार्ग पर बढऩे वाला मनुष्य नर्क में जाता है। इस मार्ग से जो बच गया उसका कल्याण हो जाता है।
उन्होंने कहा कि शुद्ध मन जीवन बदल देने वाली होती है। शुद्ध मन तभी संम्भव होगा जब मनुष्य मृत, अंधे और रोगी मन से बाहर निकलेगा। जीवन मे आगे जाना है तो मन की साधना कर उसे शुद्ध करने का प्रयास करना चाहिए। संचालन मंत्री देवीचंद बरलोटा ने किया।