*विंशत्यधिकं शतम्*
*📚💎📚श्रुतप्रसादम्*
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*तत्त्वचिंतन:*
*मार्गस्थ कृपानिधि*
*सूरि जयन्तसेन चरणरज*
मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.
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*_💥शुभ💥_*
राग जिसका प्रशस्त हो,
अंतरमें अनुकंपा की वृत्ति हो,
मन में कलुषित परिणाम न हो,
*उसे पुण्य का आश्रव होता हैं,*
*_💥अशुभ💥_*
विषयों की लोलुपता हो,
जीवनशैली प्रमादमय हो,
मलिन मनोवृत्ति का विकार हो,
परपीड़ा एवं परनिंदा से
*पापकर्म का आगमन होता हैं.!*
*_💥शुद्ध💥_*
किसी के प्रति
न राग हो,न द्वेष हो,
न मोहासक्ति का बंधन हो,
*सुख दुख में समवृत्ति हो*
*उसे न पुण्य का*
*न पाप का आश्रव होता है.!*
*📚श्री पंचास्तिकाय ग्रंथ📚*
*🦚श्रुतार्थ वर्षावास 2024🦚*