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मन पर लगाम: विजय रत्नसेनसुरीश्वरजी म.सा

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सुंदेशा मुथा जैन भवन कोंडितोप में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेनसुरीश्वरजी म.सा ने रविवारिय युवा संस्कार प्रवचन श्रेणी मे “मन पर लगाम “विषय पर प्रवचन देते हुए कहा कि :- “उपमिति भव प्रपंचा ” ग्रंथ के रचयिता श्री सिद्धर्षि गणि ने अपने मन का xray निकाला है। केमरामेन फोटोग्राफर जो फोटो लेता है वह तो बाहर की चमडी का फोटो होता है, जब कि xray मशीन में तो जो भीतर होता है , वो ही बाहर आता है।

हम बाहर कितने ही अच्छे , आराधक -साधक क्यों न दिखते हों लेकिन हमारे मन के भीतर तो गंदगी ही रही हूई है। उपमिति भव प्रपंचाकार अपने मन को सूअर की उपमा दे रहे है। जिस प्रकार सूअर को दुधपाक का आकर्षण नहीं होता है, परन्तु एक ओर विष्ठा पडी हो तो वह उसी ओर दौडता है। अपने मन की भी यही स्थिति है वह भी पांच इन्द्रियों के विषयरुपी अशुचि में ही डूबना चाहता है । फर्क इतना ही है कि सूअर को खुली विष्ठा का आकर्षण होता है, जबकि मानवीय मन को मल-मूत्र से भरी थैली का आकर्षण होता है।

अनादिकाल से हर आत्मा के भीतर मैथुन संज्ञा रही हूई है, उस संज्ञा के कारण हर आत्मा में एक विजातीय आकर्षण रहा हुआ है। यदि वह पुरुष है तो उसे स्त्री का आकर्षण रहता है, यदि वह स्त्री है तो उसे पुरुष का आकर्षण रहता है। अशुचि भावना में कहा है कि मानवीय शरीर, चाहे वह पुरुष का हो या स्त्री का हो, उसके भीतर अत्यधिक प्रमाण में अशुचि रही हूई है। गटर में जैसे गंदगी होती है, वैसी गंदगी मानव शरीर के भीतर रही हूई है। वह गन्दगी पुरुष के नौ द्वारों व स्त्री के बारह द्वारों द्वारा सतत बाहर आती रहती है।

जिस प्रकार खुली गटर के पास हम 10 मिनिट के लिए भी ठहर नहीं पाते है, वहाँ हमें भयंकर दुर्गंध आती है, उसी प्रकार मानव शरीर के भीतर भी वो ही गन्दगी है, फर्क इतना ही है कि उसके ऊपर चमडी का एक आवरण आया हुआ है, उस चमडी के कारण अशुचि से भरी उस थैली पर भी मोहित हो जाते हैं। गौरी चमडी है तो हम भीतर रही गन्दगी को देखने में भी अन्ध बन जाते हैं। मात्र बाह्य चमडी के कारण भीतर रही गंदगी हमें दिखती नहीं है।


वास्तव मे मोह का यह कैसा अंधापा है। सच मायने में मानव शरीर रुपी थैली को उलटा कर दिया जाय तो हम एक क्षण के लिये भी उसके पास खड़े नहीं रह सकते हैं। देवों को भी दुर्लभ ऐसा मानवजन्म मिला हैं, परंतु इस जीवन का महत्व समझने वाले और जीवन का वास्तविक आनंद पानेवाले कोई विरले ही दिखाई देते हैं। अधिकांश लोगों का जीवन तो मानसिक अशांति से ही घिरा होता है। 

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