तिरुपुर. आचार्य महाश्रमण अपनी अहिंसा यात्रा के तहत सोमवार को तिरुपुर पहुंचे। यहां वेल्लकोविल गांव स्थित जयम विद्या भवन मैट्रिक हायर सेकंडरी स्कूल में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए आचार्य ने कहा कि मनुष्य के जीवन में शरीर का महत्त्व है तो वाणी और मन का भी महत्त्व है। हम सभी शरीर, वाणी और मन से परिचित हैं।
ये तीनों व्यक्ति के लिए तब हितकारी हो सकती हैं, जब इन सभी पर संयम रूपी अंकुश हो। आदमी मन से कई बार परेशान हो जाता है तो कई बार मन ही मन आह्लादित भी होता है। आदमी के दु:ख का सबसे बड़ा कारण मन होता है। मन के असंयम, बाहरी प्रभावों में भ्रमण और बदलते मन के भावों के कारण आदमी दु:खी हो सकता है।
अपने मन को वश में करने का प्रयास करना चाहिए। यदि अपने मन पर काबू पा लें तो जीवन से दु:ख उसी प्रकार दूर हो सकते हैं, जिस प्रकार सूर्य के निकलते ही ठंड दूर हो जाती है।
आदमी चिंतन से दु:खी और चिंतन से सुखी बन सकता है। गृहस्थ हो अथवा साधु उसे अपने मन में शांति, समता रखने का प्रयास करना चाहिए। मन में आए गुस्से को भी असफल बनाने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे संकल्पों के प्रति अपने मन को मजबूत रखने का प्रयास करना चाहिए।
जो भी कार्य हो उसी में मन लगाने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी मन पर नियंत्रण करे तो आत्मा भी निर्मल हो सकती है।
आचार्य के मंगल प्रवचन के पश्चात साध्वी मैत्रीयशा ने अर्हतवंदना के गीत का संगान किया।
स्कूल के प्रिंसिपल पुगलेन्द्रन ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्य ने विद्यार्थियों, शिक्षक-शिक्षिकाओं और प्रबंधन से जुड़े लोगों को भी अहिंसा यात्रा के संकल्प स्वीकार करवाए। इस दौरान साध्वी उज्ज्वलकुमारी की स्मृति सभा का आयोजन हुआ।
आचार्य ने साध्वी के प्रति उद्गार व्यक्त करते हुए उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना की। साध्वी उज्ज्वलकुमारी की आत्मा के प्रति साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाने भी मंगलकामना की।