*आश्रव*- आत्मा में कर्मो का आना, संसार मे हर स्थान पाप का है, जंहा पाप न होता हो ।
यह पाप, झूठ, चोरी कब तक करुंगा यह कब छूटेगा सोचने वाला आश्रव के स्थान पर *संवर* में है। महत्व है.. *विचारों का* इसलिए कहावत है *मन चंगा कसोटी में गंगा*। स्थान का प्रभाव होता है ,क्षेत्र का महत्व है। धर्म स्थान में रहा हुआ जीव कर्म बांधता है, और संसार में रहने वाला कर्म से छुट जाता है। बैठा यहाँ धर्म स्थान में है और मन वहाँ दुसरी जगह चल रहा है, आँख से देख रहा हे पर भाव से जुड़ा नहीं, देखना अलग, विचार करना अलग- अलग।
🔰नाटक, नाटक करते आये, नाटक देखते आये अनुमोदन करते आये, पैसा बर्बाद, समय बर्बाद तुमको रस आ रहा है। जहाँ जीव की विराधना हो वहाँ *आरम्भ*।
करे, करावे, अनुमोदन करे वहाँ आरंभ है।
कर्म प्रकृति, 25 क्रिया का थोकड़ा दो चीज सीखो। इससे आरंभ में जाने से कर्म बंध से रोकती है पश्च्याताप करने से कर्म हलके होते हैं। *भाव जागृत* रहे कर्म से हल्के होते जायेंगे।
🔰 विवाह में 7 फेरे क्यो लेते है ? गुरुदेव कहते थे कि ..नारी 6 नरक तक जाती है हे नाथ तु 6 नरक तक पाप करे में तेरे साथ 7 वी नरक में तु जा और तेरे काम जाने । नारी 7वीं नरक तक नहीं जाती है आज वर्तमान में 4 नरक तक जाते है। उपर 5वे देवलोक तक जा सकते है, हा कभी अपवाद हो सकते है ।
🔰 श्री शांतिनाथ भगवान ने 64 हजार कन्याओ से ब्याह किया, पुत्र, पुत्री 1.5 करोड़ इतना बड़ा परिवार राज्य – जिनकी सेवा में 25 करोडो देवता रहते हो इतने होने के बाद वैराग्य मन मे था। आरंभ के बीच निरारंभी थे। मोक्ष के नजदीक थे।
🔰कितनी लालसा धन की, विराम लगा कि नही?
विदेश में भी दान होता है, भारत में भी दान होता है दान देना जरूरी पर नहीं करो तो वंहा की सरकार आपसे ले लेती है। दान समझ कर नहीं! भारतीय संस्कृति में 1/2 रोटी भी दान की …भावना से दिया। आपने कितना दिया महत्व नहीं जो दिया वह *त्याग भाव* से दिया।
🔰जीने का तरीका सीखो। संसार के कार्य करो मन से निर्लिप्त रहो। आरंभ पहले मन में, फिर वचन में, काया से आरंभ होता है। हम सब *भाव आरंभ* से जुड़े हे, चरम शरीरी मन से संसार में नहीं जीते, निर्मोही भाव से जीते है। आखरी भव में सारे पाप खत्म व सब पुण्य के धनी होते है पुण्य में कोई लगाव नहीं। *आरंभ* में जीव कर्म बांधता है। वचन से, काया से हुआ अलग बात’, भाव आरंभ से हुआ महा खतरनाक, उपर से कुछ नहीं (भाव आरम्भ)अन्दर से खतरनाक ? *भाव का अभाव* आरम्भ के अभाव में जीता है वह जीव कर्म बंधन से रुकता है ।
🔰 हर जीव *अपने कर्म* लेकर आता है, *अपने पुण्य* लेकर आता है, तुम क्यों चिंता करते हो ? माँ बाप को चिंता। बेटा को कोई चिंता नहीं। कोई जीव बिना कर्म के नहीं आता है ..जो होता है वह उसके कर्म से होता है। तुम फोकट में चिंता करके कर्म बांध रहे हो। 18 पाप करके तुम कर्म बांध रहे हो। वह
तो मजा ले रहा है।
भगवान की वाणी हे …जो होना है वह होगा!