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मन को समझाकर साधना के पथ पर आगे ले जाये

मन को समझाकर साधना के पथ पर आगे ले जाये

मुनि *विरति* का उपदेश करे, विरति यानी *त्याग* का उपदेश करे , मन को समझाकर साधना के पथ पर आगे ले जाये वह साधक, मन के अनुसार चले वह विराधक यह बात बताते हुए *पूज्य श्री प्रवर्तक प्रकाश मुनि महारासा* ने अपनी मधुर वाणी में फरमाया कि.. भगवान की आज्ञा का पालन करने वाला आराधक, साधक है ,परमात्मा त्याग का उपदेश करते है भोग का नही ।

*अकडं करिष्यामि इति मंद माणे*- जो नही किया वह मुझे करना है, आज तक जिसने नही किया वो में करूँगा, रिकार्ड को तोडूंगा। यह शब्द समझाता है कि आपमे *अभिमान* है , अभिमान है मतलब *क्रोध* भी है । भोगी जीव मानता नही, त्यागी सोचता है कि त्याग कर लो कल किसने देखा !!

हमारा शब्द *कषाय* से जुड़ा रहता है ,कषाय(क्रोध,मान, माया लोभ,राग द्वेष)भीतर से काम करती है जब चोट पड़ती है तो बाहर आती है। भोगी प्राणियों का विनाश करता है, छेदता है, लुटाता है , मानसिक दुख देता है । किसी शायर ने कहा है कि …

*लिफाफा देखकर मज़बून भाप जाते है ,*

*चेहरा देखकर भाव समझ जाते है।*

हमारा सारा जीवन *प्रदर्शन* में बीत रहा है , कर्म किया भोगने के लिये किया , वाह बढ़िया किया यह सुनने के लिये। इंसान की आदत *हाथ सूखा,इंसान भूखा* इसको कहते है भोग में जीना।

आप अपनी सोच देखो ? झूठी प्रशंशा से कर्म बंध रहे है , ,हम सब जी रहे है , फूल रहे है हम सब भोग में जी रहे है । इंद्रियों की अभिलाषा के साथ जीना वह भोगी ओर त्याग के साथ जीने वाला त्यागी।

*ठाणागं सूत्र* में भगवान ने 10 आश्चर्य बताये, जो कभी नही हुआ और हो गया , तीर्थंकर कभी स्त्री नही हुए ओर *श्री मल्लीनाथ भगवान** हो गये।

हम झूठ में जी रहे है, झूठ में मजा मान रहे है , ग़ालिब ने है कि..

*जिंदगी गम में है,गम में दर्द है*,

*दर्द में मजा है,ऊस मजे में जी रहे है ।*

जिंदगी गम से भरी है , उसमे दर्द है ,दर्द का मजा लेकर जी रहे हो।

जिनके चेहरे हस्ते है और दिल रोता है उनका सारा गम यही आकर खुलता है ।

*बंद मुट्ठी साख की ओर खुली मुट्ठी राख की* उसी में तुम जी रहे हो ।

-पुण्यानुबन्धीय पूण्य का पैसा धर्म मे लगता है , पापानुबंधीय पाप का पैसा धर्म मे नही लगता है ।

गुरुदेव कहते थे कि .. अपने हाल में मस्त रह दुनिया गालिया , शाबाशी भी देगी । तू कभी गालियों में उलझना मत ओर शाबाशी में डुबना मत।

असंयम में जीने वाला इसी प्रकार से सोचता है कि जो नही किया वह करना है। इतना दुःखी है आत्मा है जगती नही क्योकि मोह का आवरण है ।

त्याग तो त्याग होता है , मन से छोटा सा नियम लिया , मजाक में लिया नियम काम कर जाता है, विरति में जियो।

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