जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने भक्ति को परम विशुद्ध बनाने के लिए मन -वचन -काया की एकाग्रता पर बोलते हुए कहा कि किसी भी कार्य को सफल बनाने मे सर्व प्रथम मन की एकाग्रता होनी चाहिए। बिना मन जो भी कार्य किया जाता है वह कभी सफल नहीं हो पाता। मन को साधने के लिए कई प्रकार के तरीके प्राचीन काल से चले आ रहे है। आधुनिक काल मे भी इस मन की समस्या को सुलझाने हेतू डाक्टरी करण कर दिया गया, विविध प्रकार की दवाई का सेवन व मनो चिकित्सा की पद्धति अपनाई जाती है!
सम्पूर्ण विश्व एक छोटे से बेजान मन के लिए पता नहीं क्या क्या उपाय करते जा रहे है कारण कि स्वयं उपाय करता भी मन की व्याधि से पीड़ित है! निर्माता ही मन के रोग से आत्म हत्या करने पर तुले हुए है! इस समस्या का समाधान तो वही कर पाते है जो इसको अपने जीवन मे विजय प्राप्त कर लेते है स्वयं रोगी हो तो वह रोगी का ईलाज नहीं कर पाता हमारे आदर्श पुरषों ने स्वयं मन को प्रभु भक्ति मे लगाकर जीत लिया था! इच्छा नामक वस्तु को सदा के लिए दफना दिया था वो ही इनका उपाए बतला कर गए! हमारा मन जब जब जिन बातों को सदा के लिए परित्याग कर दिया जाए, जीवन की महत्ता को जाने समझें मन के दास गुलाम न बन कर मालिक स्वामी बनने का, इसके विपरीत चलने की हिम्मत रखें, अशुभ कार्यों से दूर रहना सीखे अध्यात्म दृष्टि को जागृत करें!
सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा भक्ति के मार्ग को मोक्ष का मार्ग बतलाया इससे सरल उपाय अन्य नहीं हो सकता आवश्यकता है मन व भक्ति एकाकार हो जाए, जीवन के प्रत्येक कार्य मे भक्ति बोलनी चाहिए! महामंत्री उमेश जैन द्वारा समाज की तरफ से आए हुए अतिथिओं का स्वागत व पुष्कर जयंती के उपलक्ष्य मे दिनांक 25सितम्बर को श्री वर्धमान सेवा संघ की और से विशाल भण्डारे का आयोजन होगा।