विजयनगर स्थानक भवन में विराजित साध्वीश्री प्रतिभाश्री जी ने बताया कि मनुष्य का मन दो प्रकार का अपृष्ठ मन व स्पृष्ठ मन होता है। मन को एकाग्र करके आत्मा की उन्नति की जा सकती है। मन को तीन तरह से अवरोध,अभ्यास व निराशक्ति से एकाग्र किया जा सकता है। दीक्षिता श्रीजी ने आगमों के नंदिसुत्र के नवें अध्याय व उत्तरायाध्ययन सूत्र के दसवें अध्याय का श्रवानपान करवाया।
साध्वी प्रेक्षाश्रीजी ने बुढ़ापे का विवेचन करते हुए बताया कि व्यक्ति धर्म और धन कर्म दोनों ही पचास की उम्र तक कर सकता है। बुढापे में कर लेंगे यह सिर्फ भ्रम है जो कभी पूरा नहीं होता है। व्यक्ति बुढापे में पराश्रित हो जाता है। वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता है। व्यक्ति को मन, विचार और बुद्धि से कभी बूढा नहीं होने देना चाहिए, शरीर भले ही बुढा हो जाये। शरीर को जवान रखने हेतु व्यक्ति को पांच बातों का ध्यान रखना चाहिये। मोह आसक्ति को कम करना,समय पर स्वास्थ चेकिंग, घर मे निर्लिप्त रहना, भक्तिमें लीन रहना, व टहलना। इन पांच बातों पर ध्यान देने से बुढ़ापे को सार्थक किया जा सकता है।संचालन संघ के मंत्री कन्हैया लाल सुराणा ने किया।