मन का स्वभाव पानी जैसा है, हमेशा नीचे की ओर ही जाता है। उसे वासना की गटर ही अच्छी लगती है। अगर पानी को ऊपर ले जाना हो तो मशीन की सहायता लेनी पड़ती है। उसी प्रकार मन को ऊपर ले जाना हो तो तप, त्याग और संयम की आवश्यकता होती है।
गाय को कहा जाता है? नदी को मां क्यों कहा जाता है? गाय के मल मूत्र में औषधि के गुण है, जो रक्षा करती है। वह मां है गाय को प्रदाता और संस्कृति का रक्षक माना जाता है। यह धरती को हरा-भरा रखती है, सब की प्यास बुझा आती है। पानी मां की तरह परोपकारी है, सबका मदद करती है।
साधु तपस्वी होते हैं, सूक्ष्म शक्ति जागरण के बीज हैं। उपाध्याय अंकुर है, आचार्य पर्प है। निर्वाण को प्राप्त शुद्ध आत्मा है। मनुष्य के जीवन में कितने उत्तल पुथल आते हैं कितने बवंडर आते हैं, ये सब अपने ही किए कर्मों का परिणाम है। लेकिन इनको दूर करने के उपाय हैं। जिनका तप, त्याग, साधना का संकल्प होता है वही परमात्मा बनता है।
श्रीपाल निरोग हो गया मंत्रित जल छिड़कने से। जिसकी वासना गई वह भगवान जैसा पवित्र हो गया। यदि आप निरंतर सत्संग करेंगे तो आप की दिशा और दशा दोनों बदल जाएगी। साधु को पाप, वासना और अज्ञान इन तीनों से बचना चाहिए।