-प्रारंभ हुए पर्यूषण पर्व साध्वी जी ने बताया कि जीव दया, साधार्मिक भक्ति, क्षमा अठ्ठम तप और वंदना पर्व की आधार शिला
शिवपुरी ब्यूरो। श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जैन समाज के एक सम्प्रदाय के पर्यूषण पर्व आज साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज के सानिध्य में प्रारंभ हुए।
आराधना भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि जब तक हम अपने मन की सफाई न करें तब तक पर्यूषण पर्व मनाने की कोई सार्थकता नही है। पर्यूषण पर्व हर वर्ष इसलिए आते हैं ताकि हम अपने आंतरिक कषायों से मुक्त हो सकते हैं। पर्यूषण पर्व के दौरान हमें जीव दया, साधर्मिक भक्ति, क्षमा, तीन उपवास की आराधना और वंदना को अपने जीवन का अंग बनाना चाहिए। साध्वी रमणीक कुंवर जी ने इस अवसर पर कहा कि धर्म गुरू आपको जगाने के लिए आए हैं ताकि आप अपने मन को शुद्ध पवित्र और सात्विक बना सकें। पर्यूषण पर्व के प्रथम दिन लक्की ड्रो के लाभार्थी तेजमल सांखला परिवार बने।
धर्मसभा के प्रारंभ में साध्वी जयश्री जी ने पर्व पर्यूषण आए हैं, जागो भाई बहिनों जगाने आए हैं भजन का गायन किया। इसके बाद साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि जैन धर्म की आत्मा अहिंसा में है और इस धर्म का पालन करने के लिए हमारे हृदय और मन में दया, अनुकंपा और मैत्री के भाव होना चाहिए। लेकिन पर्यर्ूषण पर्व में हम सिर्फ हरी सब्जी न खाने का निषेध कर मान लेते हैं कि हम अहिंसक हो गए हैं।
लेकिन अहिंसा इतनी छोटी सी चीज नहीं है। अहिंसा हमारे जीवन में तब आती है जब हमारे मन और आत्मा में दूसरों के कल्याण की भावना तथा दया और मैत्री का संचार हो। पर्यूषण पर्व में हमें साधर्मिक भक्ति पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। अपने साधार्मिक गरीब और पीड़ित भाईयों का बहुमान सम्मान और सत्कार हमें करना चाहिए। ेलेकिन क्षमा पर्यूषण पर्व की आत्मा है। हमें उन लोगों से क्षमा याचना करना चाहिए जिनके प्रति हमारे मन में वैर विरोध और वैमन्सयता के भाव है। उन्होंने कहा कि पहले अपना मन साफ करो इसके बाद परमात्मा की आराधना करो। पर्यूषण पर्व में तीन उपवास का व्रत्त भी हमें करना चाहिए। उपवास आत्मा में रमण करने का नाम है और इसके बाद चैत्यपरिपार्टी (वंदना) से पर्यूषण पर्व मनाने की हम सार्थकता सिद्ध कर सकते हैं। पर्यूषण पर्व के पहले दिन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कल्प सूत्र का वाचन किया। उन्होंने बताया कि सम्यकत्व के पांच लक्ष्ण है। जिनमें पहला लक्ष्ण अनुकंपा है। उन्होंने जैन संस्कृति में अतिथि देवो भव: के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अतिथि की सेवा और सत्कार करने का सबसे बड़ा लाभ हमें यह प्राप्त होता है कि वह अपना पुण्य आपको दे जाता है और आपके पाप के हर लेता है। 18 पापों से कमाए गए आपके दृव्य का साधर्मिक भक्ति में उपयोग हो इससे बढ़कर क्या बात होगी। आज आराधना भवन में आचार्य आनंद ऋषी जी के जन्म दिवस के अवसर पर आयोजित पांच दिवसीय कार्यक्रमों में रविवार को वंदना दिवस मनाया गया। जिसमें श्रावक और श्राविकाओं ने गुरूणी मैया रमणीक कुंवर जी महाराज को कम से कम 27 वार वंदना की।
- साध्वी जी के निर्देशन में जैन समाज मनाएगा स्वतंत्रता दिवस
साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज के निर्देशन में श्वेताम्बर जैन समाज देश की आजादी का पर्व धूमधाम और उत्साह के साथ मनाएगा। 15 अगस्त को सुबह 7 बजे से पोषद भवन से जैन भाईयों एवं बहिनों की रैली निकाली जाएगी। जिसका समापन आराधना भवन में होगा। इस अवसर पर बच्चों के लिए फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता भी आयोजित की जा रही है। जिसमें बालक बालिकायें देश भक्त बनकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे।