चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन स्थानक में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा वर्तमान में मनुष्य अपने बाहरी शरीर जो आहार हाड-मांस, चर्बी, रक्त, मज्जा आदि से बना है को सुंदर बनाने के पीछे परेशान हो रहा है। लेकिन बाहरी सुंदर होने से मनुष्य की सुंदरता नहीं बढ़ती है। मनुष्य की सुंदरता उसके आंतरिक मन से होती है।
लोग दिखावे की जिंदगी जीना पसंद करते हैं। दुनिया को दिखाने के लिए तरह तरह के कार्यो में लिप्त होते हैं लेकिन ऐसा करने से पुण्य नहीं मिलता। जो मनुष्य निश्वार्थ भाव से लोगों की सेवा में आगे बढ़ता है उसका जीवन सफल हो जाता है। मन में गंदगी होने पर अच्छे से अच्छे कार्य भी व्यर्थ हो जाते हैं। जीवन को सफल बनाने के लिए मनुष्य को सबसे पहले अपने अंदर की गंदगी को दूर करने की जरूरत है।
जब तक मन के पाप दूर नहीं होंगे तब तक जीवन मेंं सफलता नहीं मिल पाएगी। शरीर के बजाय आत्मा को सुंदर करने का प्रयास किया जाए तो बदलाव संभव है। अगर आत्मा को सुंदर नहीं किया गया तो आत्मा छोड़ते ही सुंदर शरीर का कोई मोल नहीं बचेगा।
उन्होंने कहा कि मनुष्य के जाने के बाद उसके द्वारा किया गया पाप और पुण्य का कार्य ही उसे याद दिलाएगा। आगामी 27 से 2 जून तक एसएस जैन संघ कोंडितोप के तत्वावधान में बाल संस्कार शिविर का आयोजन किया जाएगा।