वेपरी स्थित जयवाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा अनादि काल से कर्म आत्मा के साथ दूध पानी की तरह एकमेक हुए हैं। जिस प्रकार हंस की चोंच से दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है, उसी प्रकार तपस्या के द्वारा आत्मा से लगे कर्म अलग हो जाते हैं।
जैसे सोने को दबाने पर वह शुद्ध बन जाता है, इसी प्रकार तपाग्नि से आत्मा भी शुद्ध होती है। दश्वेकालिक सूत्र में चार प्रकार के विशुद्धि स्थान बताए गए हैं -लज्जा, दया ,संयम और ब्रह्मचर्य। जिस प्रकार कपड़े मेले होने पर उसकी पुनः शुद्धि की जाती है, उसी प्रकार पाप कर्म होने पर इन विशुद्धि स्थान की आराधना से आत्मा को पुनः विशुद्ध बनाया जा सकता है।
मुनि ने श्रावक के नवें गुण लज्जा का वर्णन करते हुए कहा लज्जा पापों से बचाती है। लज्जावान व्यक्ति ही गलती हो जाने पर भी सुधर जाता है। निर्लज्ज व्यक्ति पर उपदेश का कोई असर नहीं होता है। अकरणीय कार्य करने में और करणीय कार्य ना करने में लज्जा होनी चाहिए। हर व्यक्ति को अपने कर्तव्य का सुमित पालन करना चाहिए। धर्म करना कर्तव्य है और कर्तव्य का पालन करना भी बहुत बड़ा धर्म है। लज्जा श्री लोक लिहाज से नहीं अपितु पाप कार्य से होनी चाहिए।
हर व्यक्ति के भीतर दो प्रकार की आवाज उठती है – एक मन की और दूसरी आत्मा की । किसी भी गलत कार्य के लिए मन के द्वारा प्रेरित किए जाने पर आत्मा जीव को सावधान करते हुए शुभ कार्य करने से रूकती है । अनेक बार ऐसे द्वंद की स्थिति में कुछ लोग मन के गुलाम बन करके गलत निर्णय ले लेते हैं ।
मन के सेवक नहीं अपितु मन को सेवक बनाना चाहिए। मन के द्वारा कहे अनुसार कार्य करने पर अक्सर यह गलत ही साबित होते हैं। अतः मन कहे जैसा नहीं आत्मा कहे जैसा करना चाहिए। मन पर नियंत्रण रखना भी एक कठिन तपस्या है।
पाप कार्य करने के बाद मन में प्रसन्नता नहीं अपितु ग्लानि होनी चाहिए । ऊपर चढ़ना जितना कठिन होता है, उससे नीचे उतरते समय सावधान रहना उतना ही कठिन होता है। अनेक लोग सफलता के शिखर पर पहुंचने के बाद भी एक गलत कार्य करने के कारण नीचे गिरते – गिरते पतन के ग्रत में पहुंच जाते हैं।
लज्जा नीचे गिरते हुए व्यक्ति को संभालने पर का एक सशक्त माध्यम होता है। व्रत में दोष लगने पर उसे स्वीकार करते हुए उसका शुद्धीकरण करना चाहिए।
मुनि वृंद के सानिध्य में रविवार को आचार्य शुभचंद्र का 81 वां जन्मदिवस तप – त्यागपूर्वक प्रातः 9:30 बजे से मनाया जाएगा । इस अवसर पर बेंगलुरु, यादगिरी सहित अनेक क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे । रविवार दोपहर को बच्चों के लिए जयमल जैन ज्ञान ध्यान संस्कार शिविर का भी आयोजन किया जाएगा।
आचार्य शुभचंद्र के जन्मोत्सव के उपलक्ष में 129 श्राविकाओं ने सामूहिक पीला वर्ण एकासन किया ।जयमल जैन चतुर्मास समिति के प्रचार-प्रसार चेयरमैन ज्ञानचंद कोठारी ने बताया 9 उपवास की तपस्या करने वाले अजीत बोकाडिया, ममता छाजेड़ सहित अनेक तपस्वियों का श्री जयमल जैन श्रावक संघ की ओर से सम्मान किया गया।