चेन्नई मनुष्य हमारी सृष्टि का विशिष्ट प्राणी हैं| इसमें सबसे कम संख्या गर्भज मनुष्यों की हैं| *मनुष्यों में भी सबसे कम संख्या पुरुषों की है,* स्त्रियां पुरुषों से 27 गुणा अधिक हो सकती हैं| उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सूत्र के छठे स्थान के बीसवें श्लोक का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहे|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि मनुष्य ही साधना करके केवलज्ञान प्राप्त कर सकता हैं, *सिद्ध, बुद्ध, मुक्त बन सकता हैं|* इसलिए मनुष्य जन्म दुर्लभ हैं, महत्वपूर्ण हैं| मनुष्य जन्म वृक्ष हैं| वृक्ष है, तो फल लगने ही चाहिए| *जिस वृक्ष पर फल नहीं लगता, तो उसकी उपयोगिता नहीं रहती,* उसी तरह मनुष्य रूपी वृक्ष के छ: फल लगने चाहिए| हम मानव हैं, जिसे दुर्लभ जन्म बताया गया हैं, पर *वर्तमान में हमें प्राप्त हैं, सुलभ हैं| इस मानव जीवन का हम लाभ उठाये|* हमारे जीवन रूपी वृक्ष के इन छ: फलों को अपनाना चाहिए| हम प्रतिदिन नमस्कार महामंत्र, लोगस्स की माला फेरे, गुरू उपासना करें, प्रत्येक प्राणी के प्रति अनुकंपा का भाव रहे| सुपात्र (शुद्ध साधु – साध्वीयों) को दान दें| गुणी के गुणों को अपने जीवन में उतारे| आगमवाणी का श्रवण करे| ये छ: फल हमारे मनुष्य रुपी वृक्ष में लग जाते हैं, तो हमारा मनुष्य जन्म सफल हो सकता हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि गुरूकुल वास के सिवाया भी बाकी समय में भी ये सारी बाते हमारे जीवन में आयेगी, होगी, तो जीवन सफल हो जायेगा| बारहव्रती श्रावक बने| *व्यापार में नैतिकता, ईमानदारी, प्रामाणिकता रहे| झूठ, चोरी, धोखाधड़ी का प्रयास नहीं करे|* ये छ: बाते हर गृहस्थ भी आराधना करें, काम्य हैं|
प्रमुखा श्री कनकप्रभा ने कालू यशोविलास का वाचन करते हुए भीनासर की घटना को विस्तार से बताया| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि साध्वीश्री दिनेश कुमार ने कि