श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में जयपुरंदर मुनि ने उत्तराध्ययन सूत्र के तीसरे अध्ययन का विवेचन करते हुए कहा मनुष्य भव की प्राप्ति होना परम दुर्लभ है जिस प्रकार कोहिनूर हीरा बहुत कीमती है उसी प्रकार मनुष्य जन्म अनमोल है।
अनादि काल से जी संसार में परिभ्रमण करते हुए पुण्य का घड़ा भरने पर मनुष्य भव को प्राप्त करता है। नरतन के समान दूसरा कोई रतन नहीं है।
मनुष्य भव के दुर्लभता को समझने वाला ही उसका सदुपयोग कर सकता है। प्रबल पुण्य राशि के संचित होने पर मनुष्य भव जिनवाणी श्रवण, श्रद्धा और संयम में पराक्रम करने का अवसर चार दुर्लभ अंग के रूप में प्राप्त होता है।देव दुर्लभ मनुष्य जन्म को प्राप्त करने के बाद उसका सदुपयोग करना नितांत आवश्यक है।
जिस प्रकार चिंतामणि रत्न को प्राप्त करने के बाद व्यक्ति यदि उसे कौए उड़ाने में व्यर्थ गंवा दे तो उस रत्न का कोई लाभ नहीं होता है, उसी प्रकार मनुष्य जन्म को मात्र खाने -पीने, कमाने, सोने और अन्य क्रियाओं में ही व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। वस्तुतः धर्माराधना करने में ही मनुष्य जन्म की सार्थकता है।
यह मानव जीवन ओस बिंदु सम क्षणभंगुर होता है। एक पल का भी भरोसा नहीं है। अतः हर पल, हर क्षण का सदुपयोग करते रहना चाहिए। हर व्यक्ति को प्रतिदिन आत्मावलोकन करते हुए अपने हित और अहित का चिंतन करते रहना चाहिए। जो – जो दिन और रात्रि धर्माराधना में व्यतीत होती है , वही सफल है।
जिस प्रकार रस के बिना गन्ना, क्षार के बिना नमक, गंध के बिना फूल का कोई महत्व नहीं होता, उसी प्रकार धर्म के बिना जीवन व्यर्थ है। मनुष्य को अपना लक्ष्य निर्धारित करते हुए उसे प्राप्त करने हेतु प्रयत्नशील बनना चाहिए।
संख्या की अपेक्षा नहीं अपितु गुणों की अपेक्षा धर्म में अभिवृद्धि होनी चाहिए। अवसर प्राप्त करने के बाद भी जो उसका लाभ नहीं उठाता, उसे बाद में पछताना पड़ता है। समय रहते चेत कर हर अनमोल क्षण को जीवन के कण – कण के विकास हेतु उपयोगी बनाना होगा। मुनि वृंद के सानिध्य में शुक्रवार को द्रव्य एकासन का आयोजन हुआ ।