साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा मनुष्य जन्म बहुत ही अनमोल है इसलिए समय को व्यर्थ करने के बजाय सत्संग व प्रभु भक्ति में ध्यान लगाना चाहिए। यह भव बहुत ही महत्वपूर्ण है इसलिए सोच समझ कर ही आगे बढऩा चाहिए।
उन्होंने कहा इस स्वार्थी दुनिया में बहुत ही संभल कर चलने की जरूरत है। मनुष्य को गुरुदेवों के सानिध्य में जाकर ज्ञान प्राप्ति करनी चाहिए। जिस तरह सागर में से एक बूंद जाने पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ता उसी प्रकार गुरुदेवों के पास ज्ञान का भंडार होता है।
उनके सान्निध्य में जाकर भव को व्यर्थ होने से बचा लेना चाहिए। जीवन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव रखें। परिवार में अगर एकता और एक दूसरे को समझने का भाव होगा तो धर्म, तप करने का भी अलग ही आनंद मिलेगा। अपने स्वर्ग जैसे परिवार को नरक बनाने से बचें।
उन्होंने कहा अपने इस अनमोल जीवन को राग- द्वेष से नहीं बल्कि प्रेम भाव से बिताएं। धर्म व्यक्ति को मिलजुलकर रहना सिखाता है। ऐसी श्रद्धा निष्ठा होने के बाद ही मनुष्य का जीवन सार्थक बन पाएगा। सागरमुनि ने कहा आचरण से ही मनुष्य का जीवन प्रभावशाली बनता है।
उसका आचरण ही उसेे अच्छा मार्ग दिखाने में सहयोग करता है। दान, शील, तप और धर्म कर मनुष्य अपने जीवन में सफल बन सकता है। बिना किसी इच्छा के सच्चे मन से किया हुआ दान पापों को नष्ट कर देता है। धर्मसभा में संघ के अध्यक्ष आनंमल छल्लाणी और कोषाध्यक्ष गौतमचंद दुगड़ एवं अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।