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मनुष्य जन्म की सार्थकता भोगों के उपभोग में नहीं : साध्वी प्रतिभाश्रीजी

मनुष्य जन्म की सार्थकता भोगों के उपभोग में नहीं : साध्वी प्रतिभाश्रीजी

बेंगलुरु। यहां विल्सन गार्डन संघ में विराजित जैन सिद्धांताचार्य साध्वीश्री प्रतिभाश्रीजी म.सा. ने उत्तराध्ययन सूत्र का विवेचन करते हुए रविवार को कहा कि इक्षुकारीय नामक 14 वे अध्ययन कथात्मक होते हुए भी संवाद प्रधान है। इसमें 6 पात्रों का अंतरंग जीवन दर्शन है।

उन्होंने कहा कि मनुष्य जन्म की सार्थकता भोगों के उपभोग, धनासक्ति एवं इंद्रिय विषय सुखों में नहीं है। अपितु इनके त्याग एवं वैराग्य में है। सच्चा सुख और स्वतंत्रता भी इसी में है। यही इस अध्ययन का निष्कर्ष है।

उन्होंने कहा कि जो अन्य स्थविर मुनियों के साथ रहता है तथा ज्ञान आदि गुणों से युक्त रहकर जो सरलता से क्रिया करता है, जिसने निदानों का त्याग कर दिया है, जो सांसारिक संबंधियों से परिचय का त्याग करता है, जो काम भोगों की वांछा नहीं करता, जो अपरिचित रूप से घर में प्रवेश कर आहार पानी की गवेषणा करता है व जो अप्रतिबद्ध होकर विहार करता है, वही वास्तविक भिक्षु है।

साध्वीजी ने 16 वें अध्ययन में ब्रह्मचर्य महाव्रत की अखंड परिपालना के उपायों पर विवेचन किया। मानसिक शुद्धि के साथ ही शरीर संयम, खाद्य संयम, वातावरण की पवित्रता आदि कारणों पर भी विशद प्रकाश डालकर ब्रह्मचर्य की महिमा हेतु ब्रह्मचर्य को ब्रह्मचर्य रूप धर्म ध्रुव है, नित्य है शाश्वत है, सभी को सिद्धि प्रदान करने वाला है। धर्म सभा का संचालन संघ के अध्यक्ष मीठालाल मकाना ने किया।

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