हमारे व्यवहार से हमारी एक छवि बनती है और समाज इसी छवि से हमें जानता-पहचानता है। किसी भी मनुष्य की जैसी छवि बनती है, वह न केवल जीते जी उस छवि के कारण जाना जाता है, बल्कि मृत्यु के बाद भी लोग उसे उसी रूप में याद करते हैं। उपरोक्त बातें श्री सुमतिवल्लभ जैन संघ में बिराजमान आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने प्रवचन देते हुए कही। वे आगे बोले कि व्यक्ति का नाम चाहे जो भी हो, लेकिन उसकी पहचान उसके व्यवहार से होती है। यानी व्यक्ति का नाम कितना ही सुंदर क्यों न हो, लेकिन यदि उसके व्यवहार में आत्मीयता नहीं होगी तो उसके नाम का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
इसी तरह कह सकते हैं कि कोई व्यक्ति कितना ही रूपवान क्यों न हो, लेकिन यदि उसके व्यवहार में आत्मीयता का लोप है तो उसका रूपवान होने का कोई विशेष महत्व नही है। समाज में आपकी छवि अच्छी हो, इसलिए हर इंसान को अपने व्यवहार में आत्मीयता रखनी चाहिए। वह जब भी किसी से बात करे तो सामने वाले को उसकी बात और व्यवहार में आत्मीयता नजर आनी चाहिए। आत्मीयता से मनुष्य दुश्मन को भी अपना मित्र बना लेता है और आत्मीय न होने पर मित्र भी दुश्मन बन जाते हैं। मनुष्य की वाणी उसके लिए वरदान व अभिशाप, दोनों है। मधुर वचन को औषधि के समान माना गया है, जो रोग का निवारण करते हैं और कटु वचन तीर की भांति हृदय को आघात पहुंचाते हैं।इसी तरह मानव जीवन में सदाचरण का बहुत बड़ा महत्व है। मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह सामाजिक नियमों का पालन करे।
सामने वाले व्यक्ति से ऐसा व्यवहार करे, जिससे आत्मीयता की भावना जाग्रत हो। हम जैसा व्यवहार दूसरे के साथ करेंगे वैसा ही व्यवहार दूसरा भी हमारे साथ करेगा। इसलिए दूसरे से अच्छे व्यवहार की अपेक्षा करने से पहले हमें उसके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। हमारा व्यवहार हमारे आचरण पर निर्भर करता है। यदि आचरण शुद्ध हो तो व्यवहार स्वत: सुधर जाता है। व्यवहार और आचरण को हमारे पारिवारिक संस्कार और सामाजिक व्यवस्थाएं प्रभावित करती हैं। आचरण से हमारा व्यवहार प्रभावित होता है तो व्यवहार से सामाजिक प्रतिष्ठा।सच बोलना, किसी को दुख न पहुंचाना, बड़ों का सम्मान करना और नैतिक मूल्यों की रक्षा करना जैसी सारी बातें आचरण की पवित्रता में आती हैं। आचरण की शुचिता और व्यवहार की आत्मीयता से न केवल व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा मिलती है, बल्कि उसका आध्यात्मिक विकास भी होता है।