चेन्नई. अयनावरम स्थित दादावाड़ी में साध्वी कुमुदलता ने कहा कि व्यक्ति को मधुर, सरल और विनम्र भाषा का उपयोग करना चाहिए। मधुर भाषा यानी व्यक्ति-व्यक्ति के बीच बनाया जाने वाला सुंदर और मधुर सेतु। शांत विनम्र भाषा यानी जीवन के समस्त सकारात्मक भावों का जीवन जीने का आधार। मधुर वाणी में संसार के सारे सुख समाए हैं।
उन्होंने कहा, यदि व्यक्ति अपनी जिंदगी में बोलने की कला सीख ले तो 78 प्रतिशत समस्याएं अपने आप समाप्त हो जाएगी। इंसान की जिंदगी में लोकप्रियता पाने, रिश्तों को बनाने, समाज के नवनिर्माण का अगर कोई आधार है तो वह इंसान की जुबान ही है। जब तक इंसान को बोलने की कला नहीं आएगी तब तक दुनिया में स्थापित नहीं हो सकता है।
शरीर विज्ञान की व्यवस्था ऐसी है कि जीभ पर यदि चोट लगती है तो कुछ देर में या कुछ दिन में ठीक हो जाती है लेकिन वही जीभ से किसी को चोट लग जाए तो वर्षों उसके जख्म नहीं भरते। हमें जीवन की बुनियादी सीख लेनी चाहिए कि इंसान की जुबान में ही अमृत और जहर होता है।
माल भले ही थोड़ा सा हल्का हो पर बोलने वाला आदमी वजनदार है तो ग्राहक वापस उसके यहां आता है। जो आदमी इज्जत और सम्मान से बोलता है, मधुर मिठास से भरी वाणी बोलता है वह समाज में भी सम्मान पाता है। जिंदगी को खुबसूरत बनाने के लिए जुबान का खुबसूरत होना अनिवार्य है।
इंसान की खूबसूरती इंसान की जुबान से हुआ करती है। चेहरे की खूबसूरती का मूल्य केवल 20 प्रतिशत ही है बाकी सारा मूल्य जुबान और भाषा से जुड़ा हुआ है। इंसान भाषा से इस जुबान से कई बिगड़े काम सुधार लेता है और इसी जुबान से बनते हुए काम भी बिगाड़ लेता है।