बेंगलुरु। आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी ने मंगलवार को अपने प्रवचन में कहा की मधुर वाणी एक प्रकार का वशीकरण है। जिसकी वाणी मीठी होती है, वह सबका प्रिय बन जाता है। प्रिय वचन हितकारी और सबको संतुष्ट करने वाले होते हैं।
वाणी के द्वारा कहे गए कठोर वचन दीर्घकाल के लिए भय और दुश्मनी का कारण बन जाते हैं। उन्होंने कहा कि अधिकांश समस्याओं की शुरुआत वाणी की अशिष्टता और अभद्रता से ही होती है। इसलिए हमें तिरस्कारपूर्ण अनादरसूचक शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। आचार्यश्री बोले, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हमें वाणी की मधुरता का दामन नहीं छोडऩा चाहिए।
मीठी वाणी व्यक्तित्व की विशिष्टता की परिचायक होती है। मीठी वाणी को जीवन के सौंदर्य को निखारने वाली तथा व्यक्तित्व की अनेक कमियों को छिपाने वाली बताते हुए देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि हमें इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि अपने स्वार्थ के लिए हमें चापलूसी या दूसरों को ठगने के लिए मीठी वाणी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि जो सदा सुवचन बोलता है, वह समय पर बरसने वाले मेघ की तरह सदा प्रशंसनीय व जनप्रिय होता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हम जिन शब्दों का उच्चारण करते हैं, उनकी गूंज वातावरण के जरिये सामने वाले व्यक्ति के दिमाग में समा जाती है। अगर हम मृदु वचन बोलेंगे तो इनका प्रभाव दूसरे व्यक्ति पर अच्छा पड़ेगा।