ट्रिप्लीकेन, चेन्नई : तेरापंथ सभा भवन में अनुष्ठानकर्ता श्रावक-श्राविका परिवार को सम्बोधित करते हुए साध्वी डॉ मंगलप्रज्ञा ने कहा कि जिनशासन की नीवों को सशक्त और शक्ति सम्पन्न बनाने में प्रभावक मंत्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। अनेक प्रभावक साधना मंत्रों में विशिष्ट स्थान है पैसठिया छन्द एवं यंत्र का। साधना पद्धति में अनेक प्रयोग है, जिनका आलम्बन लेकर साधक आत्म उज्जवलता की दिशा में प्रस्थान करता है। मंत्र साधना विध्न निवारक तो है ही, इनके द्वारा आत्मा की पवित्रता बढ़ती है और कर्मों की निर्जरा भी होती है। पैंसठिया छंद मात्र छंद नहीं यंत्र और मंत्र संयुक्त विलक्षण साधना पद्धति है।
इस छंद पर विवेचन करते हुए साध्वीश्री ने कहा पैसठिया छंद का आधार चतुर्विंशति स्तवन (लोगस्स पाठ) है। एक मतानुसार मल्लिनाथ की अवगाहना के आधार पर पच्चीस संख्या मानी गई है पर, प्रश्न तीर्थकर स्तुति के मध्य शरीर अवगाहना की बात क्यों? विवेचन के पश्चात् समाधान की भूमि पर यह फलित हुआ कि नौंवे तीर्थंकर के दो नाम होने से 25 की संख्या का वर्णन किया जाता हैं। प्राचीन आचार्यों के अनुसार पैसठिया यंत्र सुख एवं सौभाग्य प्रदायक है। अनेक साधक सविधि इसकी साधना करते हैं।
वर्द्धमान संख्या के साथ इसका पाठ किया जाता है। यंत्र साधकों को कम से कम 31 बार इसका उच्चारण करना चाहिए। जप के साथ तप का संयोग विशिष्ट फलदायी बनता है। साध्वीश्रीजी ने कहा- कहीं से भी गुणन करने से संख्या पैंसठ (65) होती है, इसलिए इस छंद को पैंसठिया कहा जाता है। इस छंद की स्तुति प्रतिदिन करनी चाहिए।
स्वरुप चन्द दाँती
प्रचार प्रसार प्रभारी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, चेन्नई
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